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pawari boli
Vallabh Dongre 

पहलो राष्ट्रीय पवारी बोली-भाषा सम्मलेन भयो ,3 फ़रवरी 19 ख़ तिरोड़ा म
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बोलता- बोलता बोली आवय,अउर खींचता -खींचता पानी
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जेना घर म आई (माय)नी, ओना घर म कई नी
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रिश्ता की पवित्रता बनी रहे तेका साठी पवार पाय पड़य
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पश्चिमी हिंदी बुंदेली की उपबोली आय पवारी,संसार को सब्सी पहलो लोकगीत पवारी म लिख्यो गयो
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तिरोड़ा,महाराष्ट्र।राजा विक्रमादित्य और राजा भोज वंशीय पवार जाति जसी दुसरी जाति नहाय। घर म केत्ती भी बेटी हो जाए पवार कभी भ्रूण हत्या नी करत। पवार बहू माँगन जाय।पवार म दूसरी जाति साई बेटी को बाप ख़ बेटा का घर दूल्हा ख़ ख़रीदन या बोली लगावण नी जानू पड़त । एक अउर विशेषता हय पवार हन की कि बूढ़ा माय- बाप ख वी वृद्धा आश्रम म नी भेजत। बाप और भाई बहिन- बेटी का पाय पड़य। बहू का पाय पड़य। मामा भांजी का पाय पड़य। समाज म या व्यवस्था रिश्ता की पवित्रता बनी रहे तेका साठी करि रहे। अउर या परम्परा पवार म आज भी बरोबर चालू हय। नारी जाति का प्रति जो सम्मान पवार हन का मन म हय उसो दूसरी जाति म देखन ख़ नी मिलत। पर आब पवार हन भी अपना रीति रिवाज़ ,अपनी परंपरा भूलत जा रह्या हय। उनख पवारी बोली बोलना म शरम आवय या हीन भावना दूर करन की जरुरत हय। कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ मंजू अवस्थी डी लिट न जातीय गौरव प बात कही। 17 साल तक बालाघाट म पवारी बोली प काम करन वाली बहिन मंजू अपनो पूरो शोध कार्य पवार हन ख़ देन ख़ राजी हय। डॉ मंजू अवस्थी न यू भी कह्यो कि पवारी पश्चिमी हिंदी बुंदेली की उपबोली आय। संसार को सब्सी पहलो लोकगीत पवारी म लिख्यो गयो।

मुख्य अतिथि श्री वल्लभ डोंगरे ने अपनों उदबोधन म कह्यो कि गुजराती भाषी गाँधीजी न हिंदी ख़ राष्ट्रभाषा बनावन की सब्सि पहले पहल करी उसी च पहल पवारी बोली भाषा ख़ बचावन साथी मराठी भाषी भाई-बहिन हन न करी। उन्न आघ कह्यो कि बोलता-बोलता बोली आवय,अउर खींचता-खींचता पानी। जेना घर म आई (माय)नी,ओना घर म कई नी।अउर जेना घर म माय बोली नी ओना घर की कुई गत नी। पवार हन अपनो पुरानो गौरव जीवित ऱख ख़ आब भी महाजन होण को प्रमाण दे सकय। पवार महाजन कहलवाय। पुराण म उल्लेख मिलय कि जेना रस्ता महाजन जाय वा रस्ता धरम पथ बन जाय। या बात पवार हन को महत्त्व और मान बतावय और बढ़ावय। हमारी बोली भाषा म असा कई शब्द हय जी दूसरी बोली भाषा म नी मिलत। कणिक याने आटा। कणिक शब्द कण-कण जुड़ख़ बन्यो हय। वा बात आटा म नहाय। हीरोति याने मिर्ची को पाउडर। यू शब्द केवल पवारी बोली म मिलय। संभार ,भेदरा, उम्बी, लोम, लुहिड़ी जसा शब्द पवारी म मिलय। लोम धान की बाली ख कव्हय जा लोमकय। उम्बी गंहू की बाली ख कव्हय जा ऊभी रवहय। हमारी बोली का पुराना शब्द धीरु- धीरु विलुप्त हो रह्या हय। भुड़का ,एट ,ससनी ,खूंट ,परोता ,डोहन,नाँद ,बम्युटला ,समदूर ,छकड़ा रेंगी ,बड़ी गाड़ी ,उलार -जड़ ,जुपना,सरोता, पिराना,मुचका ,पानूड़, उसारी,छोलकरी ,टट्टा ,पड़दि , मछौंडी , पुस्टी , ठेमला , उभारनी , बक्कल ,आदि -आदि। श्री वल्लभ डोंगरे न बतायो कि अन्य संस्कृति का समान हमारी संस्कृति भी नद्दी किनारे विकसित भई। पूरा देश म पवारी संस्कृति का चिह्न येना नौ जघा मिलय –
वैनगंगा तटीय ,वर्धा तटीय ,ताप्ती तटीय ,तवा तटीय ,बेतवा तटीय ,क्षिप्रा तटीय ,नर्मदा तटीय ,सिंधु तटीय और गंगा तटीय।

शिव पार्वती मंदिर से ग्रंथ दिंडी निकाल ख़ पुस्तक प्रेम जतायो गयो। प्रारम्भ म राष्ट्रिय पवार क्षत्रिय महासभा प्रणीत राष्ट्रीय पवारी साहित्य कला संस्कृति की स्थापना और उद्देश्य प डॉ ज्ञानेश्वर टेम्भरे न प्रकाश डाल्यो। विधायक भाऊ विजय रहांगडाले न “सौ बका एक लिखा” कहयख कार्यक्रम को सार रख दियो। एना अवसर प प्रकाशित स्मारिका को लोकार्पण भी कर्यो गयो। समाज का 25 -30 छोटा बड़ा कवि -कवयित्री न पवारी म कविता पाठ कर ख़ समाज म प्रतिभा हन की कमी नहाय बता दियो। डॉ एन डी राऊत अउर श्री सी पी पटले न कवि और पाहुना हन ख़ सम्मान पत्र दे ख उनको मान बढ़ायो। श्री दिलीप कालभोर नागपुर न अपनी उपस्थिति सी कार्यक्रम ख गरिमा प्रदान करी।डॉ शेखराम येलेकर अउर श्री देवेंद्र चौधरी न साँझा रुप सी काव्य गोष्ठी को सञ्चालन कर्यो।

महाराष्ट्र को गोंदिया जिला को एक गाँव तिरोड़ा म 3 फरवरी 2019 ख़ आयोजित पहलो राष्ट्रीय पवारी बोली भाषा सम्मेलन म पवारी ढंढार भी भई। श्री सुभाष तुलसीता नागपुर न पर्णकलाकृति अउर श्री वाय के न काष्ठ कला प्रदर्शनी लगाई हती। ऐना अवसर पर पीएचडी की त्रिदेवी डॉ शोभा बिसेन ,डॉ अलका ,डॉ शारदा कौशिक को भी सत्कार कर्यो। बहिन विद्या बिसेन न अपनी बोली म अपनी वाद्य टीम का संग प्रस्तुति दी।

प्रणेता डॉ ज्ञानेश्वर टेम्भरेजी न हर साल आयोजन अलग अलग जघा प करन की घोषणा करी अउर हर तीन महीना म एक बार पवारी काव्य गोष्ठी करन की अपील करि। कार्यक्रम को संचालन श्री देवेंद्र भाऊ चौधरी न कर्यो। समाज को भामाशाह श्री राधेलाल जी पटले न आयोजन म पधार्या सारा पाहुना हन की भोजन चाय पानी की व्यवस्था कर ख़ एक चांगलो काम कर्यो। श्री मुरलीधरजी टेम्भरे ,डॉ ज्ञानेश्वर टेम्भरे ,श्री लखनसिंह कटरे ,श्री देवेंद्र चौधरी की मेहनत और प्रयास को परिणाम स्वरुप समाज को पहलो राष्ट्रीय पवारी बोली भाषा सम्मेलन सफलतापूर्वक सम्पन्न भयो। कार्यक्रम म मुख्य रूप सी श्री नरेश गौतम ठाकरेजी श्री चोपडे जी नागपुर श्री दिलीप कालभोर ,श्री मोतीलाल चौधरी ,श्री जयपाल पटलेजी , श्री युवराज हिंगवे ,श्री रामराव कौशिक सुश्री अलका चौधरी ,सुश्री डॉ उषा बिसेन डॉ शेखराम येलेकर आदि उपस्थित हता।

आपका “सुखवाड़ा”ई -दैनिक औऱ मासिक

pawar samaj baaraat vivah

साठ को दशक की बरात को वर्णन –
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रुनुक झुनूक चली गाड़ी
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रुनुक झुनूक चली गाड़ी,बइल नी चलत अनाड़ी।

मुड़ मुड़ जाय मरी गाड़ी,रुनुक झुनूक चली गाड़ी।

गाड़ी बठ गया बरात,हंख रस्ता म हो गई रात

हम भटक्या रात बिरात,पहुँची बरात आधी रात।

झेली बरात करी अगवानी ,पूछ्यो नी पेन ख़ पानी।

जसा तसा पहुंच्या जनवासा,गरज्या दूल्हा का सारा भासा।

शादी म हो गयो दंगल ,मंगल म हो गयो अमंगल।

क्षत्रिय पवार समाज के सभी विवाह योग्य युवक युवतियों के लिए महत्वपूर्ण जानकारी :Register Here

चलन लग्या गोटा उभारनी, कुई की कुई ख़ सोय नी।

असा म लाड़ा न ब्याही लाड़ी,रुनुक झुनूक चली गाड़ी।

रुनुक झुनूक चली गाड़ी,बइल नी चलत अनाड़ी।

मुड़ मुड़ जाय मरी गाड़ी,रुनुक झुनूक चली गाड़ी।

जेवण बठ्या सब पंगत ,जमीं वहां खूब रंगत।

पातर प पातर डल रही ,दौड़ी पाछ पाछ चल रही।

हिरदा मारय अक्खन धड़ाका,पड़ नी जाय कहीं फाका।

सुक सुक जीव करय सासा, देख बराती मारय ठहाका।

ऐतता म लाड़ी की बुआ दहाड़ी,रुनुक झुनूक चली गाड़ी।

रुनुक झुनूक चली गाड़ी,बइल नी चलत अनाड़ी।

मुड़ मुड़ जाय मरी गाड़ी,रुनुक झुनूक चली गाड़ी।

चाउर भी हो गया गिल्ला,सब बराती रह्या चिल्ला।

पंगत की स्वारी सर गई,रोटी भी सब जल गई।

कढ़ी की गंजी पलट गई ,सब्जी भी चरकी हो गई।

अन दार भी हो गई गाढ़ी,रुनुक झुनूक चली गाड़ी।

रुनुक झुनूक चली गाड़ी,बइल नी चलत अनाड़ी।

मुड़ मुड़ जाय मरी गाड़ी,रुनुक झुनूक चली गाड़ी।

जेय ख़ भयो नी उठ गया ,जाय ख़ गाड़ी म बठ गया।

गाड़ी म लग्या दचका ,अन पेट का लड्डू खसक्या।

गाड़ी का चक्का टूट गया, सब झन औंधा पड़ गया।

बहिन का टोंगरया फूट गया,भाई का दुई दाँत टूट गया।

भाभी की कोहयनी फूट गई, माय की कम्मर मुड़ गई।

अन दादा की फूट गई दाढ़ी ,रुनुक झुनूक चली गाड़ी।

रुनुक झुनूक चली गाड़ी,बइल नी चलत अनाड़ी।

मुड़ मुड़ जाय मरी गाड़ी,रुनुक झुनूक चली गाड़ी।

वल्लभ डोंगरे “सुखवाड़ा” सतपुड़ा संस्कृति संस्थान ,भोपाल।

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बनन चल्या तुम लाडा-
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बनन चल्या तुम लाडा भैया बनन चल्या तुम लाडा।
बीस बरस की उमर तुम्हारी चाबत फिरय पान सुपारी
नागर की मुट्ठी नी पकड़ी करयो नी बिक्रा भाड़ा
बनन चल्या तुम लाडा भैया बनन चल्या तुम लाडा।

सूट बूट अउर कोट पहरेव बांधी तुम्न एक टाई
डोरा म काजर डाल्यो ,बन्दर सी शकल बनाई
बाटा का जूता पहरया मौजा म बांध्यो नाड़ा।
बनन चल्या तुम लाडा भैया बनन चल्या तुम लाडा।

घर म नी अन्न को दाना ,फिर भी जीप कराई
उधारी म गहना ले गया वीडियो सूटिंग कराई
बड़ा बड़ा हैरत म पड़ गया रह ख थाड़ा थाड़ा।
बनन चल्या तुम लाडा भैया बनन चल्या तुम लाडा।

गाँव गाँव ढूंढ़ी लाड़ी ,टीका म लाई एक साड़ी
पंगत भी निपटा दी तुम्न दे ख बेसन कढ़ी
शादी का दूसरा दिन सी लटकाहे तुम चीथड़ा
बनन चल्या तुम लाडा भैया बनन चल्या तुम लाडा।

बाल बढ़या है हिप्पी साई ,दाढ़ी बकरा सी बढ़ाई
पोरया पोरी सा तमाशा देखय तुम्ख शरम नी आई
मुंढा प पानी नी जरसो ,डोरा म है चिपड़ा
बनन चल्या तुम लाडा भैया बनन चल्या तुम लाडा।

ससरा जू कोट सिलाहे जिनगी भर ओख चलाहे
सिला सके नी एक कोट तुम कर ख एत्ति कमाई
करदोडा म चड्डी अटकाहे ,डाल सके नी नाडा
बनन चल्या तुम लाडा भैया बनन चल्या तुम लाडा।

नांगर का हक्ले तुमसी सम्भलत नी आय चाडा
दूसरा को तमाशा देखय ,तुमते रह्ख थाडा
लाड़ी आ जाहे घर म तुम्ख कुई नी सुदाडा
बनन चल्या तुम लाडा भैया बनन चल्या तुम लाडा।
वल्लभ डोंगरे,”सुखवाड़ा”,सतपुड़ा संस्कृति संस्थान ,भोपाल।

क्षत्रिय पवार समाज के सभी विवाह योग्य युवक युवतियों के लिए महत्वपूर्ण जानकारी :Register Here

noble

“समाज के नोबेल पुरस्कार” आयोजन हेतु सहयोग का आग्रह
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अनुदान ,योगदान व सहयोग राशि देने की कर सकते हैं अभी से घोषणा
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संयुक्त खाता खुलने पर आप उसमें राशि कर सकेंगे सीधे हस्तांतरित –
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भोपाल। समाज की प्रतिभाओं को पहचानने ,उन्हें सम्मानित करने ,उन्हें समाज से जुड़ने जोड़ने के लिए उर्वर भूमि तैयार करने ,उनकी प्रतिभाओं का लाभ समाज को मिले यह सुनिश्चित करने तथा उनकी पृथक से पहचान स्थापित करने के उद्देश्य से “समाज का नोबेल पुरस्कार” स्थापित किया जा रहा है। प्रारम्भ में इसे प्रारम्भ करने हेतु किसी व्यक्ति, संगठन, व्यवसायी संस्थान या किसी सरकार से अपेक्षा करने की बजाय “सुखवाड़ा” और शासकीय सेवक समूह द्वारा आगे आकर इसकी बागडोर संभालने का उत्तरदायित्व अपने ऊपर लिया है ताकि यह स्थापित किया जाकर प्रारम्भ किया जा सके।

चूँकि यह आयोजन राष्ट्रिय स्तर का होगा , साथ ही गरिमामय व भव्य भी होगा क्योंकि इससे हमारा स्वाभिमान और साख जुडी हुई है, अतः आगंतुकों ,अतिथियों के आवास और भोजन की व्यवस्था के साथ साथ आयोजन स्थल व उससे जुडी हुई तमाम व्यवस्थाओं पर व्यय होना स्वाभाविक है। यह व्यय किसी एक व्यक्ति ,संस्था ,संगठन या विभाग द्वारा वहां कर पाना संभव प्रतीत नहीं होता है ,अतः समाज स्तर से हर समाज सदस्य इस कार्य हेतु स्वेच्छा से अपना योगदान देना तय कर ले तो हमारा समाज भी आपके सहयोग से एक ऐतिहासिक काम करके आने वाली पीढ़ियों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत कर समाज को कुछ देने के गौरव से भर उठेगा।

आप अपने स्तर से इस आयोजन के सफल सञ्चालन हेतु जो भी अनुदान ,योगदान ,सहयोग देना चाहें उसकी घोषणा पूर्व में करके हमें सम्बल प्रदान कर सकते हैं और इस आयोजन हेतु संयुक्त खाता खुलने पर आप उसमें अपना योगदान सीधे हस्तांतरित कर सकते हैं।

आप अपना नाम ,पता व् मोबाइल न के साथ प्रदत्त सहयोग राशि की सूचना
पवार
शासकीय सेवक व्हाट्सअप,समूह एडमिन, बलवंत कड़वेकर के व्हाट्सप्प नं- 9424395953 , मोबाइल नम्बर ,8839383240 पर या सुखवाड़ा के व्हाट्सप्प मोबा न 9425392656 पर मैसेज /सूचना दे सकते हैं।

आशा है ,आप समाज के इस आयोजन में उदारता से अपना अधिकतम योगदान देकर इसे सफल बनाने में हरसंभव सहयोग करेंगे। सादर।

स्वैच्छिक सहयोग स्वघोषणा

1. श्री जयराम पवार( भादे)
लोको पायलट रेलवे जुन्नारदेव( छिन्दवाड़ा)

👉 घोषित राशि- 5000 रु
शैक्षणिक पुरुस्कार हेतु

2. श्री Dr Rajan K Bisen चिचगड़ ,तह. देवरी .जि. गोंदिया घोषित राशि- 5ooo रु

3- श्री नरेश गौतमजी
JE CPWD भोपाल घोषित राशि- 5111 रु

4- श्री अनिल, श्री सुनील,श्री विजय जी बोबडे. Pithampur परिवार कीं औंर से राशि- 5ooo रु

आपका “सुखवाड़ा ” और शासकीय सेवक समूह.

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pawar samaj nobel

👉एक सामाजिक पहल👈

🏆    किया जा सकता है
समाज का नोबल पुरस्कार स्थापित -🏆
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हर क्षेत्र की प्रतिभा को किया जायेगा सम्मानित –
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शासकीय सेवक व्हाट्सअप समूह उठाएगा ,स्वेच्छा से  व्यय –
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गरिमामय व् भव्य आयोजन प्रतिवर्ष भोपाल में –
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भोपाल।  हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाली समाज की प्रतिभाओं को राष्ट्रिय स्तर पर प्रतिवर्ष भोपाल में आयोजित गरिमामय और भव्य आयोजन में समाज के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जाना विचारणीय एवं प्रस्तावित है। प्रारम्भ में इसकी पहल केंद्र व् राज्य सरकार के शासकीय सेवक समूह और “सुखवाड़ा” के संयुक्त तत्वावधान में की जा सकती है।  आवश्यकता पड़ने पर इसमें स्वेच्छा से सहयोग करने वाले सामाजिक बंधुओं का सहयोग लेने पर भी विचार किया जा सकता है। इस आयोजन में पवार बाहुल्य जिलों की प्रतिभाओं के साथ- साथ देश- विदेश और हर राज्य की समाज की चुनिंदा प्रतिभाओं का सम्मान किया जाना सुनिश्चित किया जा सकता है।

समाज के इस नोबेल पुरस्कार का नामकरण समाज के इतिहास पुरुष व् चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य , राजा  और साहित्यकार भृतहरि तथा लोकनायक राजा भोज के  समन्वित नाम पर किया जा सकता है ताकि समाज की इन तीनों महान विभूतियों के व्यक्तित्व व् कृत्तित्व  से वर्तमान पीढ़ी को परिचित कराया जा सके और उनके योगदान को इतिहास में अमर बनाये रखने हेतु इसे भावी पीढ़ी तक पहुँचाया जा सके। इस तरह समाज के इस नोबल पुरस्कार का नाम “विक्रम भृतहरि भोज सम्मान “रखा जाना उचित प्रतीत होता है।

सम्मान हेतु प्रतिभाओं का चयन समाज व् देश के लिए किसी भी क्षेत्र में किये गए उल्लेखनीय योगदान को ध्यान में रखकर किया जा सकता है । प्रतिभाओं के चयन में शासकीय सेवक समूह और सुखवाड़ा का एकाधिकार रखा जा सकता है ताकि चयन में किसी भी तरह के बाहरी हस्तक्षेप को रोका जा सके  और इसकी विश्वसनीयता को बनाये रखा जा सके ।

प्रारम्भ में प्रतिवर्ष आयोजित किये जाने वाले इस आयोजन का व्यय शासकीय सेवक समूह द्वारा वहन किया जाना विचारणीय एवं प्रस्तावित है। ऐसा करने से शासकीय सेवक भी  समाज के प्रति अपने सरोकार सिद्ध कर  एक अच्छी पहल का उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं । इस पहल के दूरगामी और अच्छे परिणाम सामने आ सकते हैं।  आवश्यकता पड़ने पर इसमें समाज  स्तर से भी सहयोग लेने पर विचार किया जा सकता है। इस आयोजन हेतु सहयोग राशि  प्रथम व् द्वितीय श्रेणी के प्रत्येक अधिकारी, कर्मचारी  1000 रुपये  व तृतीय तथा चतुर्थ श्रेणी के प्रत्येक अधिकारी कर्मचारी 500 रुपये निर्धारित की जा सकती है । यह राशि समूह के खाते में जमा की सकती है एवं संयुक्त हस्ताक्षर से ही आहरित किये जाने के प्रावधान किये जा सकते है जिससे राशि का शत – प्रतिशत उपयोग केवल आयोजन  हेतु किया जाना सुनिश्चित किया जा सके । राशि के संकलन व व्यय में पूरी पारदर्शिता बरतने हेतु  प्रति वर्ष आय- व्यय का विवरण सभी से साझा किये जाने के प्रावधान किये जा सकते है ।

इस विषय पर आप सभी के सुझाव आमंत्रित है ताकि शीघ्र इसे अंतिम रुप प्रदान कर इसपर अमल सुनिश्चित किया जा सके।

सादर विचारार्थ एवं सुझावार्थ  प्रस्तावित

द्वारा
वल्लभ डोंगरे ( संपादक ,सुखवाड़ा) भोपाल.
बलवंत कडवेकर (शासकीय सेवक समूह एडमिन ) छिन्दवाड़ा .

pawar pratyasi

हरियाणा खाप की तरह एकजुटता बताना जरुरी –
पवार प्रत्याशी के विरुद्ध कोई भी पवार खड़ा नहीं हो-
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मुलताई-प्रभातपट्टन विधानसभा क्षेत्र पवार बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण यहाँ से श्री मनीराम बारंगेजी 3 बार और श्री अशोक कड़वे जी 1 बार विधायक चुने गए। इस तरह यहाँ पवारों का 20 सालों तक एकछत्र राज्य रहा। पवारों का एकछत्र राज्य तोड़ने की कुत्सित कूटनीति के चलते मुलताई -प्रभात पट्टन क्षेत्र का परिसीमन किया गया और इसके पवार बहुल गाँवों को आमला विधान सभा में शामिल कर मुलताई विधानसभा क्षेत्र में प्रभातपट्टन के कुछ कुनबी माली गावों को शामिल किया गया जिससे राजनीतिक स्वार्थ साधा जा सके। पवारों को यह समझने की जरुरत है कि पवारों को तोड़ने के लिए यह राजनीतिक षड़यंत्र रचा गया। पर पवार भी कभी एकजुट होकर अपनी शक्ति प्रदर्शन करने के स्थान पर पवार प्रत्याशी ही अपने समाज के संभावित विजेता प्रत्याशी के विरुद्ध खड़े होकर वोट काटने से बाज नहीं आये। इससे यही सन्देश जाता रहा रहा कि पवारों में एकता की कमी है ,परस्पर प्रेम और आदर की कमी है। इसके चलते राजनीतिक दल भी पवारों से दूरी बनाये रखने में ही अपना हित समझने लगे।
अब समाजहित में पवार द्वारा ही पवार को तोड़ने की गन्दी और दूषित राजनीति से बाहर आने की जरुरत है। पवार प्रत्याशी के विरुद्ध कोई भी पवार खड़ा नहीं होगा यह संकल्प लेना होगा। और इसपर भी कोई नहीं मानता है तो उसका सामाजिक बहिष्कार किये जाने का प्रावधान किये जाने की जरुरत है। उसे सामाजिक कार्यक्रम में बुलाना और उसके घर आना -जाना छोड़ दिया जाना चाहिए। समाज व्यक्ति से बड़ा होता है। व्यक्ति कभी समाज से बड़ा नहीं होता। जो व्यक्ति समाज से बड़ा बनने की ज़िद करे तो उसका ऐसा सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए कि उसकी सात पीढ़ियां भी उसे भूला न पाएं। कुनबी लॉबी अपनी सक्रियता के चलते भाजपा और कांग्रेस दोनों बड़े दलों से अपने लिए टिकट जुगाड़ने का भरसक प्रयास करेगी क्योंकि पवारों की नासमझी और नालायकी के कारण उनके दाँतों को राजनीति का खून लग गया है। और किसी को एक बार खून लग जाए तो वह हिंसक हो उठता है। अब 53,000 कुनबी मतदाता के आंकड़े का गणित चलाकर दोनों बड़े दल कुनबी प्रत्याशी को प्राथमिकता देना पसंद करेंगे। ऐसी स्थिति में 45,000 पवार मतदाता होते हए भी कोई दल पवार प्रत्याशी को प्राथमिकता दे,इतना आसान और संभव प्रतीत नहीं होता।
यदि दोनों बड़े दल कुनबी प्रत्याशी को अपना प्रत्याशी बनाते हैं तो ऐसी स्थिति में 53 ,000 कुनबी मतदाता का बंटना तय है। किसी भी दल के प्रत्याशी के लिए पवार के समर्थन के बिना जीत पाना संभव नहीं है।
यदि भाजपा या कांग्रेस दोनों में से कोई भी दल पवार प्रत्याशी को टिकट देता है तो समाज हित में हमें चाहिए कि अपना स्वार्थ त्यागकर हम पवार प्रत्याशी को पूरा समर्थन करें। किसी पराये को जिताने से तो अच्छा है हम अपने को ही जिताये।अपना अपना होता है और पराया पराया। मौसी कभी माँ नहीं बन सकती।
यदि कोई भी बड़ा दल पवार प्रत्याशी नहीं बनाता है तो ऐसे में 45,000 मतदाताओं के मत का समाजहित में दोहन किया जाना चाहिए। तब हरियाणा खाप की तर्ज पर सर्वमान्य उम्मीदवार को अपना निर्दलीय प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा जाना चाहिए। किसी भी विधानसभा सीट के लिए इतनी बड़ी संख्या में मत मायने रखते हैं। हरयाणा पंचायत जिस तरह राजनीति में दखल रखकर राज़नीतिक दलों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करने का दबाव बनाती है और समाज का उम्मीदवार न खड़ा करने पर स्वयं का उम्मीदवार मैदान में उतारकर सभी दलों को धूल चटाती है ,उसी तर्ज पर चुनाव रणनीति बनाने का समय आ गया है। कांग्रेस हो या भाजपा यदि समाज के सदस्य को उम्मीदवार नहीं बनाती है तो उन्हें सामाजिक शक्ति का अहसास कराने का समय आ गया है। अपना वोट हम परायों को देकर कब तक उनकी नज़रों में हम पराये बने रहेंगे। पराये कभी अपने नहीं होते, और अपने कभी पराये नहीं होते।
समाज के सर्वांगीण विकास के लिए समाज का लीडर जरुरी है। समाज का लीडर समाज की समस्याओं से ज्यादा करीब से जुड़ा होता है,अतः वह समस्याओं के समाधान के लिए सार्थक पहल कर सफलता सुनिश्चित कर सकता है। लीडर जीवन में जरुरी है। हर युग में लीडर की जरुरत होती है। बिना लीडर के समाज दिशाविहीन हो जाता है। आज समाज लीडर के अभाव में दिशाविहीन है। पवार बाहुल्य जिलों में भी विधानसभा और लोकसभा चुनाओं में समाज की जिस तरह उपेक्षा की जाती है उससे तो यही साबित होता है कि राजनीति के कुछ स्वार्थी तत्व अपना हित साधने के लिए जानबूझकर समाज की उपेक्षा करते आ रहे हैं। अब समय आ गया है कि उनकी उन चालों को नेस्तनाबूद कर और अन्य समाज के उम्म्मीदवारों को जीताने में उम्र जाया करने की जगह हम अपने ही किसी योग्य भाई- बहन को इस क्षेत्र में तैयार कर और सहयोग कर अपना भाग्य अपने हाथों लिखें।
सुखवाड़ा ,सतपुड़ा संस्कृति संस्थान ,भोपाल।

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pawar samaj vidhayak neta

बोलो पवारों, बोलो !
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किसने तुमको रोक दिया
किसने बाँधा, उद्दाम प्रवाह
किसने बदल दिया
विद्रोही धारा को तालाब में
किसने छूकर आशाओं को
दुःख के सागर में डुबो दिया
किसने अंतस की आंधी को
शांत किया ,बुझा दिया
पवारों उमड़ो ,घुमड़ों
पवारों मचलों ,मसलो ,
तोड़ो निद्रा ,तोड़ो कारा,
तोड़ो गैरों के गढ़ों को
कहाँ हो तुम पवारों !
पवारों तुम कड़को ,
बिजलियों की तरह
पवारों तुम गरजों
बादलों की तरह
विधान सभा चुनाव में
लिख दो नया विधान
कब तक दूसरों को देते रहोगे वोट
और जिताते रहोगे दूसरों को
कब बनोगे तुम विधायक, सांसद
कब तक बनाओगे उधार के ट्ट्टुओंओं को
अपना विधायक, सांसद
कब तक अपने घर में दुबके रहोगे
कब बनोगे राजा
कब तक रहोगे गंगू तेली
कब बनोगे जंगल के शेर
जिसकी दहाड़ सुनाई दे सके
विधानसभा और संसद में भी।
कब तक नाथे जाओगे किसी के हाथों
अब समय है नाथने का नाथ को
और समय है पवारी स्वाभिमान को
जिन्दा करने का ,जिन्दा रखने का
पवारों जागो ,पवारों टूट पड़ों दुश्मन पर
भूखे शेर की तरह
और छीन लो सत्ता की बागडोर
जिसके सहारे बांधते रहे हैं वे तुमको
और तोड़ते रहे हैं तुम्हारे सपनों को
कुचलते रहें हैं तुम्हारे अरमानों को
और फेरते रहे हैं पानी
अक्सर तुम्हारे जज्बातों पर.
पवारों बोलो ,पवारों बताओं
जहाँ पवार हैं वहां पवार नहीं तो
जहाँ पवार हैं वहां गवार क्यों ?
बोलो पवारों , बोलो !!!

सुखवाड़ा ,सतपुड़ा संस्कृति संस्थान ,भोपाल।

maa tapti multai

19 जुलाई ताप्ती जयंती पर विशेष –
वह शहर हमारा मुलताई है-
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कहते है इस शहर में कभी कोई भूखा नही सोता.. इस शहर में हर कोई सोने की तरह तपता है और निखरता है, इस शहर में कभी नारद की तपोभूमि थी आज यह अंचल जन-जन की तपोंभूमि है। यमराज को भी बहन ताप्ती के शहर में आना मना है, इस शहर में लोग ख़ुद से मोक्ष पाने चले आते है, कहते है यहाँ मरने पर स्वर्ग मिलता है।

इस शहर में लोग ३६५ दिन त्योहार मनाते है। यहाँ मेला तो कार्तिक पूर्णिमा से मात्र पंद्रह दिनों के लिए भरता है पर साल भर ख़त्म होने का नाम नहीं लेता। दुःख यहाँ दिखाई नही देता। ताप्ती अंचल के सीधे साधे लोगों के चेहरों पर खिली सरल, सरस और सहज मुस्कान मन को मोह लेती है और दुःख को सोख लेती है। इनसे मिलना प्रयाग में गंगा यमुना के मिलने की तरह असीम आनंददायी होता है। यहाँ समय ही नहीं चलता, यहाँ जीवन भी चलता है। सुख यहाँ किसी मेहमान की तरह टिकता नहीं, लेकिन यह शहर कभी रुकता नहीं। यहाँ मन्दिर हैं, मस्जिद है , गिरिजाघर है,गुरूद्वारे हैं। कहीं पंजाब, तो कहीं गुजरात, कहीं बंगाल तो कहीं महाराष्ट्र,कही राजस्थान तो कहीं मद्रास इस शहर में दिखता है। फैशन के दौर में भी एक धोती या गमछे में ही यह शहर जी लेता है। इतना ही नही, यह शहर श्री सुंदरलाल देशमुख और दादा धर्माधिकारी जैसे विद्वान् भी देता है। यह शहर श्री चंद्रकांत देवताले जैसे साहित्यकार और श्री आचार्य जैसे प्रशासनिक अधिकारी भी देता है। यहाँ का प्रकाश खातरकर अंटार्कटिक हो आता है तो श्री विजय देव और श्री राजुरकर राज राजधानी भोपाल में लोगों के दिलों पर राज करते हैं। सतपुड़ा संस्कृति संस्थान सतपुड़ा की संस्कृति से पुरे देश और दुनिया को परिचित कराता है तो सतपुड़ा आंचलिक साहित्य परिषद् यहाँ की धरोहरों से सम्बंधित जानकारी घर घर पहुंचाने में विश्वास करता है।

यहाँ फटी धोती और सफारी सूट एक ही दुकान पर चाय पीता है। यहाँ लुगड़ा और जीन्स पहनी महिलाएं ताप्ती में स्नान कर साथ साथ मंदिर में पूजा करती हैं। यहाँ पश्चिम और पूरब दोनों एक साथ दर्शन दे जाते हैं।

इस शहर का नाम पूछने पर कोई इसे मुलतापी और कोई मुलताई कहता है लेकिन अपने इस शहर की परिभाषा हर आदमी कुछ यू बताता है..

“माँ ताप्ती की दुहाई है वो शहर हमारा मुलताई है…”

ताप्ती संस्कृति –

ताप्ती वाक है। असत से सत ,तमस से ज्योति ,अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाने वाले मार्ग का निर्देश करती है। ताप्ती काव्य है, इसमें रामायण- सा औदात्य और महाभारत- सा विस्तार है। ताप्ती रसवंती है ,इसमें सहस्त्र -सहस्त्र महाकाव्यों का रस है। ताप्ती कला है। इसके कटान ,ढलान ,उतार- चढाव उसकी कला कृतिया है। ताप्ती गीत है ,लय है ,नाद है। ताप्ती गति ,यति, आरोह -अवरोह है। ताप्ती सृजन धर्मिणी है। वह हर पल ,हर छण ,हर घड़ी ,हर प्रहर ,हर दिन ,हर मास ,हर वर्ष कुछ न कुछ सिरजती रहती है। कभी चट्टानों से कोई अपूर्व आकृति तो कभी कगारों का बाँकपन और कहीं धाराओं की सहस्त्र-सहस्त्र लट। संगीत रचती ताप्ती की कल -कल की ध्वनि और जलप्रपात से गिरते जल की धार की धारदार ध्वनि मन को मोहित करती है। ताप्ती कल्पदा है ,कामरूपा है ,कला विद्या ,काव्य और संगीत की अधिष्ठात्री है।

ताप्ती प्रेयसी है,अथाह रसभरी है। वह आमंत्रित करती है। उसमें उतर जाने को ,खो जाने को और विलीन हो जाने को। ताप्ती धीरा है, प्रशांता है ,मृदु भाषिणी है। वह चिर यौवना है। उसका यौवन और प्रेम मातृत्व में फलिभूत होता है या मुक्ति में। राम ने सरयू की गोद में जन्म लिया ,उससे प्रेम किया और उसी में समाहित हो गए। ताप्ती अंचल का हर राम ताप्ती की गोद में जन्म लेता है ,ताप्ती से प्रेम करता है और अंत में उसी में समाहित हो जाता है। ताप्ती तालाब और ताप्ती किनारे होने वाले उत्तरकर्म इसका प्रमाण है। ताप्ती केवल धरती के भूगोल में ही नहीं बहती ,वह जन -जन के अंतस में भी बहती है। वह अंतःसलिला है। कार्तिक माह में ताप्ती किनारे लगने वाले मेले उसी अंतर्प्रवाह का बाह्य प्रस्फुटन है।

वल्लभ डोंगरे ,सुखवाड़ा ,सतपुड़ा संस्कृति संस्थान ,भोपाल।

gaav barish

इत पानी नी आवत आय, बाकी सब ठीक ठाक है
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छपरी की दीवार धस गई बाकी सब ठीक ठाक है
खेत म की झोपड़ी बठ गई बाकी सब ठीक ठाक है।

बांडा बईल मर गयो , अउर डूंडा ख बेच दियो
खेती म फजीता हो गयो बाकी सब ठीक ठाक है।

डुंगी म सेंगा बुई है, डोभरी म अवंदा मक्या है
इत पानी नी आवत आय बाकी सब ठीक ठाक है।

बड़ो भाई गाँव म घुमय ,छोटो खेत म नी जात
पोरया पोरी कहना नी सुनत, बाकी सब ठीक है।

बेटा बहू रोटी नी देत ,भूरी काकी कव्हत रहे
मरा जघ अक्खन रुवय ,बाकी सब ठीक ठाक है।

अच्छो कुई पोरया होये ते ,तुरजी साठी देख्जो
सारजी कुई संग भाग गई ,बाकी सब ठीक ठाक है।

बटनी क़ो ससरा आयो थो,दायजा म फ़टफ़टी माँगय
ओकी सासू भी अड़ गई ,बाकी सब ठीक ठाक है।

तोरो भाऊ रात भर खासय,कभी कभी उल्टी सास चलय
मरी कम्मर अक्खन सिलकय ,बाकी सब ठीक ठाक है।

तोरो काकू रोज धुरा सरकावय,बाट सी आवन जान नी देत
एक दिन अक्खन लड़ाई भई ,बाकी सब ठीक ठाक है।

पोरया हन सब स्कुल जाय,मास्टर न कल भगा दिया
उनकी फीस नी भरी आय ,बाकी सब ठीक ठाक है।

पोरा का दिन लाठी चल गई ,नान्हा को माथा फूट गयो
किसना जेल म बंद है ,बाकी सब ठीक ठाक है।

कारी की छोड़ चिट्ठी हो गई ,साल भर नी भया बिहा ख
रांड अक्खन रूवय दिन भर ,बाकी सब ठीक ठाक है।

पोहर सी पाव्हना आया था ,तोरा बिहा साठी
पोरी पढ़ी लिखी है, बाकी सब ठीक ठाक है।

-वल्लभ डोंगरे,सुखवाड़ा,सतपुड़ा संस्कृति संस्थान,भोपाल।

pawarmatrimonial mothers day

विश्व माँ दिवस पर विशेष (मई का द्वितीय रविवार)-
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जिनकी माँ हैं/जिनकी माँ नहीं हैं जरूर पढ़ें -अत्यंत मार्मिक व हृदयस्पर्शी-
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माँ रिश्तों को कथड़ी की तरह सिलती है,एक-एक टुकड़े को जोड़ती है –
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माँ सुई धागे की परंपरा को आगे बढाती है-
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कहते है ,माँ को जब ठण्ड लगती है तो वह अपने बच्चों को स्वेटर पहनाती है। जब घर में मिठाई के चार पीस हो और खाने वाले पांच तो सबसे पहले मिठाई खाने का आज मन नहीं कहने वाली माँ होती है। और लो और लो कहकर और प्यार से भोजन परोसकर अपने बच्चों को खिलाने वाली माँ होती है।

इतना प्यार इतना स्नेह जिंदगी में फिर कभी भोजन करते नहीं मिलता। माँ के हाथ की रोटी और चटनी में जो स्वाद होता है वैसा स्वाद फिर कभी चखने को नहीं मिलता और वह स्वाद भुलाये नहीं भूलता। माँ के हाथ की बासी रोटी भी छप्पन भोग सा स्वाद देती है।


माँ रिश्तों को कथड़ी की तरह सिलती है। माँ एक-एक टुकड़े को जोड़ती है। माँ छोटे,बड़े,कमजोर,मजबूत सब तरह के टुकड़ों का उपयोग करती है। माँ की नज़र में सब उपयोगी है। और माँ उन सबका उपयोग करना भी जानती है। सुई दो को एक करती है ,कैची एक को दो कर देती है। माँ सुई धागे की परंपरा को अपनाती और आगे बढाती है।माँ लुगड़ा डांडया करती है। कमजोर को चलाने के लिए उसकी जगह मजबूत को प्रदान करती है ताकि कमजोर भी सम्मान के साथ जी सके। वह कमजोर को अपनी जिंदगी से खारिज नहीं करती।


माँ का पूरा जीवन दर्शन कथड़ी में समाया हुआ है। कथड़ी ही माँ की पूंजी होती है। बेटी को ससुराल विदा करते समय माँ अपनी एकमात्र पूंजी कथड़ी ही तो बेटी को सौंपती है। बेटे जब अलग अलग होते हैं तब भी माँ सब बेटों के साथ रहने का प्रबंध कर लेती है। वह अपनी गोद और अपने आँचल की छाँव भले ही सब बच्चों को मुहैया न करा पाए पर वह कथड़ी के रुप में हर बेटे को अपनी गोद जैसा अहसास कराने में सफल होती है। और बेटे भी कथड़ी ओड़-बिछाकर माँ की उपस्थिति महसूस करते है। माँ अपनी संतान में जीती है। माँ परदेश से आये अपने बेटे के मुँह को देखकर ही उसके सुखी या दुखी होने का अहसास कर लेती है।


माँ केवल और केवल कथड़ी में जीती है। माँ द्वारा सिली हुई कथड़ी परस्पर एक दूसरे से जुड़े होने का अहसास कराती है और एक दूसरे से जुड़े रहने का सन्देश देती है। एक एक टुकड़ा भी जुड़कर ठण्ड का सामना करने में मदद करता है। टुकड़ा जुड़कर ही कथड़ी बनता है ,सम्पूर्णता पाता है। जुड़े रहकर ही किसी के काम आया जा सकता है। जुड़ने से घर परिवार और समाज के छोटे और कमजोर सदस्य भी अपना अधिकतम देने लायक बन पाते हैं। बड़ों और बहादुरों के सहारे छोटे और कमजोर सदस्य अपना जीवन सार्थक कर पाते हैं। माँ कथड़ी के माध्यम से यह सन्देश भी देती है किसी पर आश्रित मत रहो। गद्दे, रजाई न सही पर हम अपने लिए कथड़ी की व्यवस्था तो कर ही सकते है।


माँ द्वारा बेटी को दी गई कथड़ी केवल कपड़ों का पुंज मात्र नहीं होती। माँ कथड़ी के माध्यम से अपनी बेटी को जीवन का सच्चा और सार्थक सबक सिखाती है। ससुराल में सबकुछ जुड़ा हुआ रहे। कुछ भी बिखरे नहीं ,कुछ भी टूटे नहीं। यदि कभी कोई बिखरे भी ,टूटे भी तो भी उन्हें जोड़कर रखे जाने के प्रयास किये जाए। जुड़े रहने से ही जीवन सुरक्षित रहता है और सम्पूर्णता तथा सार्थकता पाता है। छोटा,अनुपयोगी या निरर्थक जैसा कुछ भी नहीं होता। ईश्वर द्वारा सृजित हर चीज अमूल्य है और उसका किसी न किसी उद्देश्य से सृजन हुआ है। माँ की यह शिक्षा और माँ का यह संस्कार बेटी को घर से दूर ससुराल में भी जीने का आधार प्रदान करता है।

माँ इस कथड़ी के रुप में ससुराल में भी अपनी बेटी का सम्बल और सहारा बनती हैतथा अपनी ममता का अहसास कराती रहती है। माँ का अपनी संतान से जुड़ाव इतना जबर्दस्त होता है कि ससुराल में रहकर भी बेटी माँ के गांव से आने वाले हर शख्स को पहचान लेती है। यहाँ तक कि बेटी मायके से आये कुत्ते को भी पहचान लेती है और उसे देखकर कुछ देर ही सही पर अपने को अपने मायके में होने के सुख से सराबोर कर लेती है। माँ द्वारा बेटी के लिए भेजी गई रोटी ससुराल वाले खाते हैं पर बेटी अपने ससुराल वालों को माँ के हाथ की रोटी खाता देख खुश हो लेती है और रोटी के पल्लू में चिपके टुकड़ों को खाकर ही तृप्त हो लेती है जैसे भगवान् कृष्ण द्रौपदी के अक्षय पात्र में चिपके चावल के एक दाने को खाकर तृप्त हो लेते हैं।बेटी ससुराल में भी माँ के हाथ की रोटी के लिए तरसती रहती है।

माँ तभी अपनी बेटी के लिए राखी और नागपंचमी पर रोटी भेजती है। बेटी जब भी मायके से ससुराल जाती है तब भी माँ कभी बेटी को खाली हाथ विदा नहीं करती। वह अपने हाथ से बनी रोटी बेटी के लिए बांधती है ताकि माँ के हाथ की रोटी का स्वाद और अपनी माँ की याद उसे बनी रहे। माँ अपनी बेटी ने मन में सदैव जिन्दा रहना चाहती है क्योंकि माँ ही बेटी का एकमात्र सम्बल होती है। और बेटी भी माँ की यादों के सहारे अपने ससुराल के दुःख दर्दों को भुलाकर अपनी जिंदगी जीने की राह चुनती है।


माँ जब इस संसार से विदा होती है तो सबसे ज्यादा दुःख बेटी को होता है।माँ के जाते ही बेटी को अपने मायके जाने का रास्ता बंद होने का अज्ञात भय सताने लगता है। मायके से ससुराल खाली हाथ लौटने के विचार से ही बेटी की रूह काँप जाती है। और माँ की तेरहवीं में शामिल बेटी पहली बार मायके से ससुराल खाली हाथ लौटती हैतथा अपने साथ माँ की यादों का पहाड़ लेकर ससुराल पहुँचती है। ससुराल से मायके आने में बेटी को रास्ते का सफर भी थकाता नहीं पर आज बेटी उसी रास्ते लौटते थक जाती है और बुरी तरह टूट जाती है। बार बार उसका मन पीछे मुड़ मुड़ कर देखता है शायद माँ की एक झलक मिल जाए। बेटी रोटी है रास्ते भर। और उसका रोना सुनकर रोते हैं रास्ते के सभी पेड़ पौधे ,ढोर जानवर ,खेत खलिहान ,नदी नाले। मानों बेटी के साथ पूरी प्रकृति रो रही हो।

बेटी अपना दुःख रास्ते में ही रोकर हल्का कर देना चाहती है क्योंकि वह जानती है उसका दुःख हल्का करने वाली माँ अब इस संसार में नहीं है। उसका रोना सुनकर रोने वाली माँ अब इस संसार में नहीं है। उसके आँसू पोंछकर अपनी छाती से लगाने वाली माँ अब इस संसार में नहीं है। उसका चेहरा देखकर दुबली और कमजोर हो गई है कहने वाली माँ अब इस संसार में नहीं है। उसके लिए गुड़ और नारियल गोला भेजने वाली माँ अब इस संसार में नहीं है। बेटी का सन्देश सुनकर भाई को अपनी बहन को लाने भेजने वाली माँ अब इस संसार में नहीं है। और हर आने जाने वाले से बेटी का सुखवाड़ा पूछने वाली माँ अब इस संसार में नहीं है।


वल्लभ डोंगरे ,सुखवाड़ा ,सतपुड़ा संस्कृति संस्थान ,भोपाल।

 

Happy Mothers Day #pawarmatrimonial

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