बैतूल जिले के पंवारों का इतिहास
बैतूल जिले में भाट के मतानुसार पंवार समाज के पूर्वज लगभग विक्रय संवत 1141 में धारा नगरी धार से बैतूल आए थे। जिले में लगभग पंवारों के 200 गांव है। पंवारों की संख्या लाखों में है। बैतूल जिले के पंवार अग्निवंशी है, इनका गोत्र वशिष्ठ है, प्रशाखा प्रमर या प्रमार है। ये पूर्ण रूप से परमार (पंवार) राजपूत क्षत्रिय है। वेद में इन जातियों को राजन्य और मनोस्मृति में बाहुज, क्षत्रिय, राजपुत्र तथा राजपूत और ठाकुरों के नाम से संबोधित किया है। सभी लोग अपने भाट से अपने वास्तविक इतिहास की जानकारी अवश्य लें ताकि आने वाली पीढ़ी को भविष्य में यह पता रहे कि वे कौन से पंवार है उनका गोत्र क्या है? हमारे वंश के महापुरूष कौन है। जब मालवा धार से पंवार मुसलमानों से युद्ध करते हुए नर्मदा तट तक होशंगाबाद पहुंचे वहां उस समय कि परिस्थितियों के कारण सभी लोगों ने अपने जनेऊ उतारकार नर्मदा में डाल दिए थे। भाट लोगों के अनुसार ये सभी परमार शाकाहारी थे, मांस मदिरे का सेवन नहीं करते थे।
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वेदिक सोलह संस्कारों को अपनाते थे किंतु समय और विषम परिस्थितियों के कारण सेना के इस समूह की टुकडिय़ां क्रमश: बैतूल, छिंदवाड़ा, सिवनी, बालाघाट, मंडला, जबलपुर, रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव, भिलाई, दुर्ग तथा महाराष्ट्र के नागपुर, भंडारा गोंदिया, तुमसर, वर्धा, यवतमाल, अमरावती, बुलढाना आदि जिलों में जाकर बस गए। बैतूल और छिंदवाड़ा के पंवारों को उस समय यहां रहने वाली जातियों के लोगों ने अपनी बोली से भुईहर कहा जो अपभ्रंस होकर भोयर कहलाये। उस समय की भोगौलिक परिस्थिति तथा आर्थिक मजबूरियों के कारण ये समस्त पंवार अपने परिवार का पालन पोषण करने के चक्कर में अपने मूल रीति रिवाज और मूल संस्कार भूलते चले गए। सभी ओर क्षेत्रीय भाषा का प्रभाव बढ़ गया इसलिए इन सभी क्षेत्रों में वहां की स्थानीय भाषा का अंश पंवारों की भाषा में देखने आता है किंतु आज भी पंवार समाज की मातृभाषा याने बोली में मालवी भाषा और राजस्थानी भाषा के अधिकांश शब्द मिलते है। सैकड़ों वर्षो के अंतराल के कारण लोगों ने जो लोकल टाइटल (पहचान) बना ली थी वो कालांतर में गोत्र के रूप में स्थापित हो गई। आज प्रचलित सरनेम को ही लोग अपना गोत्र मानते है जबकि गोत्र का अभिप्राय उत्पत्ति से है और सभी वर्ण के लोगों की उपत्ति किसी न किसी ऋषि के माध्यम से ही हुई है। हमें गर्व है कि हमारी उत्पत्ति अग्निकुंड से हुई है। और हमारे उत्पत्ति कर्ता ऋषियों में श्रेष्ठ महर्षि वशिष्ठ है, इसलिए हमारा गोत्र वशिष्ठ है।
बैतूल जिले के पंवार मूलत: कृषक है। अब युवा पीढ़ी के लोग उद्योग धंधे में तथा नौकरियों में आ रहे है। शिक्षा के अभाव के कारण यहां के पंवार समाज के अधिकांश लोग आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए है। इस समाज में पहले महिलाएं शिक्षित नहीं थी किंतु अब महिला तथा पुरूष दोनों ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर उच्च पदों पर आसीन है। समाज के उच्च शिक्षित लोग सभी क्षेत्र में बड़े-बड़े महत्वपूर्ण पदों पर और विदेशों में भी समाज का गौरव बढ़ा रहे है। कृषक भी आधुनिक विकसित संसाधनों से उन्नत कृषि व्यवसाय में लगे हुए है।
बैतूल जिले के पंवारों के गांव की सूची
बैतूल क्षेत्र के गांव
1. बैतूल नगरीय क्षेत्र 2. बैतूलबाजार नगरीय क्षेत्र, 3. बडोरा 4. हमलापुर, 5. सोनाघाटी, 6. दनोरा, 7. भडूस, 8. परसोड़ा 9. ढोंडबाड़ा, डहरगांव, बाबर्ई, डोल, महदगांव, ऊंचागोहान, रातामाटी, खेड़ी सांवलीगढ़, सेलगांव, रोंढा, करजगांव, नयेगांव, सावंगा, कराड़ी, भोगीतेढ़ा, भवानीतेढ़ा, लोहारिया, सोहागपुर, बघोली, सापना, मलकापुर, बाजपुर, बुंडाला, खंडारा, बोड़ीबघवाड़, ठेसका, राठीपुर, खेड़ी भैंसदेही, शाहपुर, भौंरा, घोड़ाडोंगरी, पाथाखेड़ा, शोभापुर, सारणी क्षेत्र, भारत भारती, जामठी, बघडोना, झगडिय़ा, कड़ाई, मंडई, गजपुर, बाजपुर, पतरापुर, सांपना, खेड़लाकिला, चिखल्या (रोंढा), कोरट, मौड़ी, कनाला, बयावाड़ी
मुलताई क्षेत्र के गांव – मुलताई नगरीय क्षेत्र, थावर्या, कामथ, चंदोराखुर्द, करपा, परसठानी, देवरी, हरनया, मेलावाड़ी, बूकाखेड़ी, चौथिया, हरदौली, शेरगढ़, मालेगांव, कोल्हया, हथनापुर, सावंगा, डउआ, घाट बिरोली, बरखेड़, पिपरिया, डोब, सेमरिया, पांडरी सिलादेही, जाम, खेड़ी देवनाला, चिचंडा, निंबोरी चिल्हाटी, कुंडई, खंबारा, मल्हारा, कोंढर, जूनापानी, सेमझर, डहरगांव, चैनपुर, तुमड़ी, डोल, मल्हाराखापा, पिपरपानी, नीमदाना, व्हायानिडोरनी, छोटी अमरावती, छिंदखेड़ा, गाडरा, सोमगढ़, झिलपा, नंदबोही, दुनावा, दुनाई, गांगई, मूसाखापा, खल्ला, सोनेगांव, सिपावा, भैंसादंड, मलोलखापा, बालखापा, घाट पिपरिया, सरई, काठी, हरदौली, लालढाना, खामढाना, लीलाझर, बिसखान, मयावाड़ी, थारी, मुंडापार, चिखलीकला, कपासिया, लाखापुर, हिवरा, पारबिरोली, खैरवानी, सावंगी, लेंदागोंदी, मोरखा, तरूणाबुजुर्ग, डुडरिया, पिडरई, जौलखेड़ा, मोही, हेटीखापा, परमंडल, नगरकोट, दिवट्या, बुंडाला, हेटी, खतेड़ाकला, हरनाखेड़ी, अर्रा, बरई, जामुनझिरी, टेमझिरा, बाड़ेगांव, केकड्या, ऐनस, निर्गुण, सेमझिरा, पोहर, सांईखेड़ा, बोथया, ब्राम्हणवाड़ा, खेड़लीबाजार, बोरगांव, बाबरबोह, महतपुर, माथनी, छिंदी, खड़कवार, केहलपुर, तरोड़ा, सोड्ंया, रिधोरा, सोनोरी, सेमरया, जूनावानी, चिचंडा, हुमनपेट, बानूर, खेड़ी बुजुर्ग, उभारिया, खापा, नयेगांव, ससुंद्रा, पंखा, अंधारिया,
आमला नगरीय क्षेत्र – जंबाड़ा, बोडख़ी, नरेरा, छिपन्या, पिपरिया, महोली, उमरिया, सोनेगांव, बोरदेही, चिचोली, भैंसदेही, गुबरैल, डोलढाना आदि।
बैतूल जिले के वर्तमान में पंवारों के भिन्न-भिन्न सरनेम, उपनाम जिसे आज ये लोग गोत्र कहते है।
परिहार या पराड़कर, पठाड़े, बारंगे, बारंगा, बुआड़े, देशमुख, खपरिए, पिंजारे, गिरहारे, चौधरी, चिकाने, माटे, ढोंडी, गाडरी, कसारे, कसाई, कसलिकर, सरोदे, ढोले, ढोल्या, बिरगड़े, उकड़ले, रोलक्या, किरणकार, किनकर, किरंजकार, घाघरे, रबड़े, रबड्या, भोभाट, दुखी, बारबुहारे, मुनी, बरखेड्या, बागवान, देवासे, देवास्या, फरकाड्या, फरकाड़े, नाडि़तोड़, भादे, भाद्या, कड़वे, कड़वा, रमधम, राऊत, रावत, करदात्या, करदाते, हजारे, हजारी, गाड़क्या, गाकरे, खरफुस्या, खौसी, खवसे, कौशिक, पाठेकर, पाठा, मानमोड्या, मानमोड़े, हिंगवे, हिंगवा, डालू, ढालू, डहारे, डोंगरदिए, डोंगरे, डिगरसे, ओमकार, उकार, टोपल्या, टोपले, गोंदर्या, धोट्या, धोटे, ठावरी, ठूसी, लबाड़, ढूंढाड्या, ढोबारे, गोर्या, गोरे, काटोले, काटवाले, आगरे, डोबले, कोलया, हरने, ढंडारे, ढबरे, तागड़ी, सेंड्या, खसखुसे, गढढे, वाद्यमारे, सबाई।
सिवनी, बालाघाट, गोंदिया, महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ़ में प्रचलित सरनेम – अम्बूल्या, आमूले, कटरे, कटरा, कोलहया, गौतम, चौहान, चौधरी, चैतवार, ठाकुर, टेम्भरे, टेम्भरया, डाला, तुरूस, तुरकर, पटले, पटलया, परिहार, पारधी, कुंड, फरीद, बघेला, बिसन, बिसेन, बोपच्या, बोपचे, भगत, भैरव, भैरम, भोयर, ऐड़ा, रंजाहार, रंजहास, रंदीपा, रहमत, राणा, राना, राउत, राहंगडाले, रिमहाईस, शरणागत, सहारत, सहारे, सोनवान्या, सोनवाने, हनवत, हिरणखेड्या, छिरसागर।
पंवारों का मूल गौत्र तो वशिष्ठ ही है ऊपर दिए गए सभी सरनेम या उपनाम है।
उपरोक्त जानकारी प्रकाशन दिनांक तक प्राप्त ग्रामों के नाम तथा सरनेम इस लेख में दिए गए है।