बोलो पवारों, बोलो !
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किसने तुमको रोक दिया
किसने बाँधा, उद्दाम प्रवाह
किसने बदल दिया
विद्रोही धारा को तालाब में
किसने छूकर आशाओं को
दुःख के सागर में डुबो दिया
किसने अंतस की आंधी को
शांत किया ,बुझा दिया
पवारों उमड़ो ,घुमड़ों
पवारों मचलों ,मसलो ,
तोड़ो निद्रा ,तोड़ो कारा,
तोड़ो गैरों के गढ़ों को
कहाँ हो तुम पवारों !
पवारों तुम कड़को ,
बिजलियों की तरह
पवारों तुम गरजों
बादलों की तरह
विधान सभा चुनाव में
लिख दो नया विधान
कब तक दूसरों को देते रहोगे वोट
और जिताते रहोगे दूसरों को
कब बनोगे तुम विधायक, सांसद
कब तक बनाओगे उधार के ट्ट्टुओंओं को
अपना विधायक, सांसद
कब तक अपने घर में दुबके रहोगे
कब बनोगे राजा
कब तक रहोगे गंगू तेली
कब बनोगे जंगल के शेर
जिसकी दहाड़ सुनाई दे सके
विधानसभा और संसद में भी।
कब तक नाथे जाओगे किसी के हाथों
अब समय है नाथने का नाथ को
और समय है पवारी स्वाभिमान को
जिन्दा करने का ,जिन्दा रखने का
पवारों जागो ,पवारों टूट पड़ों दुश्मन पर
भूखे शेर की तरह
और छीन लो सत्ता की बागडोर
जिसके सहारे बांधते रहे हैं वे तुमको
और तोड़ते रहे हैं तुम्हारे सपनों को
कुचलते रहें हैं तुम्हारे अरमानों को
और फेरते रहे हैं पानी
अक्सर तुम्हारे जज्बातों पर.
पवारों बोलो ,पवारों बताओं
जहाँ पवार हैं वहां पवार नहीं तो
जहाँ पवार हैं वहां गवार क्यों ?
बोलो पवारों , बोलो !!!
सुखवाड़ा ,सतपुड़ा संस्कृति संस्थान ,भोपाल।