साठ को दशक की बरात को वर्णन –
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रुनुक झुनूक चली गाड़ी
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रुनुक झुनूक चली गाड़ी,बइल नी चलत अनाड़ी।
मुड़ मुड़ जाय मरी गाड़ी,रुनुक झुनूक चली गाड़ी।
गाड़ी बठ गया बरात,हंख रस्ता म हो गई रात
हम भटक्या रात बिरात,पहुँची बरात आधी रात।
झेली बरात करी अगवानी ,पूछ्यो नी पेन ख़ पानी।
जसा तसा पहुंच्या जनवासा,गरज्या दूल्हा का सारा भासा।
शादी म हो गयो दंगल ,मंगल म हो गयो अमंगल।
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चलन लग्या गोटा उभारनी, कुई की कुई ख़ सोय नी।
असा म लाड़ा न ब्याही लाड़ी,रुनुक झुनूक चली गाड़ी।
रुनुक झुनूक चली गाड़ी,बइल नी चलत अनाड़ी।
मुड़ मुड़ जाय मरी गाड़ी,रुनुक झुनूक चली गाड़ी।
जेवण बठ्या सब पंगत ,जमीं वहां खूब रंगत।
पातर प पातर डल रही ,दौड़ी पाछ पाछ चल रही।
हिरदा मारय अक्खन धड़ाका,पड़ नी जाय कहीं फाका।
सुक सुक जीव करय सासा, देख बराती मारय ठहाका।
ऐतता म लाड़ी की बुआ दहाड़ी,रुनुक झुनूक चली गाड़ी।
रुनुक झुनूक चली गाड़ी,बइल नी चलत अनाड़ी।
मुड़ मुड़ जाय मरी गाड़ी,रुनुक झुनूक चली गाड़ी।
चाउर भी हो गया गिल्ला,सब बराती रह्या चिल्ला।
पंगत की स्वारी सर गई,रोटी भी सब जल गई।
कढ़ी की गंजी पलट गई ,सब्जी भी चरकी हो गई।
अन दार भी हो गई गाढ़ी,रुनुक झुनूक चली गाड़ी।
रुनुक झुनूक चली गाड़ी,बइल नी चलत अनाड़ी।
मुड़ मुड़ जाय मरी गाड़ी,रुनुक झुनूक चली गाड़ी।
जेय ख़ भयो नी उठ गया ,जाय ख़ गाड़ी म बठ गया।
गाड़ी म लग्या दचका ,अन पेट का लड्डू खसक्या।
गाड़ी का चक्का टूट गया, सब झन औंधा पड़ गया।
बहिन का टोंगरया फूट गया,भाई का दुई दाँत टूट गया।
भाभी की कोहयनी फूट गई, माय की कम्मर मुड़ गई।
अन दादा की फूट गई दाढ़ी ,रुनुक झुनूक चली गाड़ी।
रुनुक झुनूक चली गाड़ी,बइल नी चलत अनाड़ी।
मुड़ मुड़ जाय मरी गाड़ी,रुनुक झुनूक चली गाड़ी।
वल्लभ डोंगरे “सुखवाड़ा” सतपुड़ा संस्कृति संस्थान ,भोपाल।