गांव की माय –
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टूटी फूटी खाट प सुवय, हाथ सिराना ले ख माय
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मक्या की पेरी रोटी प भेदरा की चटनी सी माय।
रोज सबेरे पनघट पानी, रोज सबेरे चूल्हा माय।
लकड़ी फाटा कपड़ा लत्ता ,गोबर पानी करय माय
थोड़ी सी फुर्सत नी ओख, ओखरी सुपड़ा साई माय।
चूल्हा चौका रोज सरावय आँगन छड़ा डालय माय।
टूटी फूटी खाट प सुवय, हाथ सिराना ले ख माय।
आधी सुवय आधी जागय ,हर आरा प उठय माय।
सब ख अच्छो ताजो भोजन रुखो सूखो खाय माय।
घर म जब बीमार है कुई ते, डॉक्टर नर्स दाई माय।
सब्ख अच्छा कपड़ा लत्ता ,लुगड़ा डांडया पहरय माय।
टुकड़ा टुकड़ा जोड़ काथड़ी,घर म सब्ख जोड़य माय।
खान पेन ख भाऊ लावय घर म बरकत लावय माय।
घर म कुई नाराज है गर ते, मस्का नोनी साई माय।
दिन भर भी फुर्सत नी ओख,अउत का पाछ फिरय माय।
घट्टी दापका कोदो कुटकी, धान जसी पिसाय माय।
लेत नी वा कभी दवाई, जोड़य पाई पाई माय।
गाय बईल अउर बेटा बेटी, सब्की चिंता करय माय।
बेटा बेटी साईं खेत म, एक एक दाना बुवय माय।
नींदय खुरपय फसल देखय,देख देख हर्षावाय माय।
काटय उठावय दावन करय ,दुःख भूसा सी उड़ावय माय।
बेटा ख जब नज़र लगय ते मिर्ची धूनी साई माय।
बुरी नज़र उतारन साठी, गाल ढिठौना साई माय।
नागपंचमी राखी पोरा, बेटी लेन भिजावय माय।
बेटी जब ससुराल सी आवय राखी दिवाली साई माय।
यु भी खिला दिउ ऊ भी खिला दिउ,रांध रांध खिलावय माय।
हर सावन प बेटी ख पहरावय, नवतो लुगड़ा चोरि माय।
बेटी की जब बिदा करय ते, तब तब रोटी बाँधय माय।
बुढ़ापा म एकली हो गई ,छूट्या बेटा बहू माय।
देत नी आब कुई दवाई ,बनी गाठोड़ी साई माय।
मोटी ताजी बूढी काया,सूखी सुक्टी, ढांडा माय।
दवा नी दारू पेज नी पानी,कहाँ जाऊ कह रुवय माय।
जेन पाल्या सात सात ख,वा एक सी नी पलत माय।
-वल्लभ डोंगरे,सुखवाड़ा,सतपुड़ा संस्कृति संस्थान भोपाल।