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अग्निवंशी

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परमार / पवार वंशीय राजाओं ने मालवा के एक नगर धार को अपनी राजधानी बनाकर 8वीं शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक राज्य किया था। उनके ही वंश में हुए परमार /पवार वंश के सबसे महान अधिपति महाराजा भोज ने धार में 1000 ईसवीं से 1055 ईसवीं तक शासन किया।

महाराजा भोज से संबंधित 1010 से 1055 ई. तक के कई ताम्रपत्र, शिलालेख और मूर्तिलेख प्राप्त होते हैं। भोज के साम्राज्य के अंतर्गत मालवा, कोंकण, खानदेश, भिलसा, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़ एवं गोदावरी घाटी का कुछ भाग शामिल था। उन्होंने उज्जैन की जगह अपनी नई राजधानी धार को बनाया।

ग्रंथ रचना : राजा भोज खुद एक विद्वान होने के साथ-साथ काव्यशास्त्र और व्याकरण के बड़े जानकार थे और उन्होंने बहुत सारी किताबें लिखी थीं। मान्यता अनुसार भोज ने 64 प्रकार की सिद्धियां प्राप्त की थीं तथा उन्होंने सभी विषयों पर 84 ग्रंथ लिखे जिसमें धर्म, ज्योतिष, आयुर्वेद, व्याकरण, वास्तुशिल्प, विज्ञान, कला, नाट्यशास्त्र, संगीत, योगशास्त्र, दर्शन, राजनीतिशास्त्र आदि प्रमुख हैं।

उन्होंने ‘समरांगण सूत्रधार’, ‘सरस्वती कंठाभरण’, ‘सिद्वांत संग्रह’, ‘राजकार्तड’, ‘योग्यसूत्रवृत्ति’, ‘विद्या विनोद’, ‘युक्ति कल्पतरु’, ‘चारु चर्चा’, ‘आदित्य प्रताप सिद्धांत’, ‘आयुर्वेद सर्वस्व श्रृंगार प्रकाश’, ‘प्राकृत व्याकरण’, ‘कूर्मशतक’, ‘श्रृंगार मंजरी’, ‘भोजचम्पू’, ‘कृत्यकल्पतरु’, ‘तत्वप्रकाश’, ‘शब्दानुशासन’, ‘राज्मृडाड’ आदि ग्रंथों की रचना की। ‘भोज प्रबंधनम्’ नाम से उनकी आत्मकथा है। हनुमानजी द्वारा रचित रामकथा के शिलालेख समुद्र से निकलवाकर धारा नगरी में उनकी पुनर्रचना करवाई, जो हनुमान्नाटक के रूप में विश्वविख्यात है। तत्पश्चात उन्होंने चम्पू रामायण की रचना की, जो अपने गद्यकाव्य के लिए विख्यात है।

आईन-ए-अकबरी में प्राप्त उल्लेखों के अनुसार भोज की राजसभा में 500 विद्वान थे। इन विद्वानों में नौ (नौरत्न) का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। महाराजा भोज ने अपने ग्रंथों में विमान बनाने की विधि का विस्तृत वर्णन किया है। इसी तरह उन्होंने नाव व बड़े जहाज बनाने की विधि का विस्तारपूर्वक उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने रोबोट तकनीक पर भी काम किया था।

मालवा के इस चक्रवर्ती, प्रतापी, काव्य और वास्तुशास्त्र में निपुण और विद्वान राजा राजा भोज के जीवन और कार्यों पर विश्व की अनेक यूनिवर्सिटीज में शोध कार्य हो रहा है।

गोत्र प्रमुख शाखा कुलदेवी कुलदेवता वेद प्रमुख निवास क्षत्रिय
प्रमर वशिष्ठ प्रमर प्रमार परमार इनकी ३५ शाखाए;उज्जैनीय नलहर भोजपुरिया उम्मत मेपती चंदेलिया मोरी सोडा सांकल खेर टुंडा बेहिल बल्हार काबा रेन्हवर सोर्तिया हरेल खेजुर सुगडा बरकोटा पुनीसंबल भीबा कल्पुसर कलमोह कोहिला पुष्या कहोरिया धुन्दा देवास बहरहर जिप्रा सोपरा धुन्ता टीकुम्बा टीका भोयर पवार दुर्गा या काली शिव या महाकाल सामवेद आबू मालवा उज्जैन धार उत्तरप्रदेश बिहार बेन्गंगा बर्धा बेतुल खानदेश गुजरात राजस्थान पंजाब छतीसगढ़ आन्ध्र चंद्रपुर मैसूर
चौहान वत्स २४ शाखाए प्रमुख –हाडा रवीदी भदोरिया नीमराण देवड़ा दोगाई वरमाया आशापुरी विष्णु यजुर्वेद बंगाल को छोड़कर सारे भारत में
परिहार कश्यप १७ शाखाए प्रमुख चंद्रावत तुरावत केसावत सुरवाणा पडीहांडा चामुण्डा ऋग्वेद उत्तरप्रदेश राजस्थान बिहार गुजरात
सोलंकी या चालुक्य भारद्वाज १६ शाखाए प्रमुख बघेल सोसके सिखरिया रालका विष्णु अथर्ववेद राजस्थान उत्तरप्रदेश बिहार गुजरात मध्यप्रदेश

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