हरियाणा खाप की तरह एकजुटता बताना जरुरी –
पवार प्रत्याशी के विरुद्ध कोई भी पवार खड़ा नहीं हो-
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मुलताई-प्रभातपट्टन विधानसभा क्षेत्र पवार बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण यहाँ से श्री मनीराम बारंगेजी 3 बार और श्री अशोक कड़वे जी 1 बार विधायक चुने गए। इस तरह यहाँ पवारों का 20 सालों तक एकछत्र राज्य रहा। पवारों का एकछत्र राज्य तोड़ने की कुत्सित कूटनीति के चलते मुलताई -प्रभात पट्टन क्षेत्र का परिसीमन किया गया और इसके पवार बहुल गाँवों को आमला विधान सभा में शामिल कर मुलताई विधानसभा क्षेत्र में प्रभातपट्टन के कुछ कुनबी माली गावों को शामिल किया गया जिससे राजनीतिक स्वार्थ साधा जा सके। पवारों को यह समझने की जरुरत है कि पवारों को तोड़ने के लिए यह राजनीतिक षड़यंत्र रचा गया। पर पवार भी कभी एकजुट होकर अपनी शक्ति प्रदर्शन करने के स्थान पर पवार प्रत्याशी ही अपने समाज के संभावित विजेता प्रत्याशी के विरुद्ध खड़े होकर वोट काटने से बाज नहीं आये। इससे यही सन्देश जाता रहा रहा कि पवारों में एकता की कमी है ,परस्पर प्रेम और आदर की कमी है। इसके चलते राजनीतिक दल भी पवारों से दूरी बनाये रखने में ही अपना हित समझने लगे।
अब समाजहित में पवार द्वारा ही पवार को तोड़ने की गन्दी और दूषित राजनीति से बाहर आने की जरुरत है। पवार प्रत्याशी के विरुद्ध कोई भी पवार खड़ा नहीं होगा यह संकल्प लेना होगा। और इसपर भी कोई नहीं मानता है तो उसका सामाजिक बहिष्कार किये जाने का प्रावधान किये जाने की जरुरत है। उसे सामाजिक कार्यक्रम में बुलाना और उसके घर आना -जाना छोड़ दिया जाना चाहिए। समाज व्यक्ति से बड़ा होता है। व्यक्ति कभी समाज से बड़ा नहीं होता। जो व्यक्ति समाज से बड़ा बनने की ज़िद करे तो उसका ऐसा सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए कि उसकी सात पीढ़ियां भी उसे भूला न पाएं। कुनबी लॉबी अपनी सक्रियता के चलते भाजपा और कांग्रेस दोनों बड़े दलों से अपने लिए टिकट जुगाड़ने का भरसक प्रयास करेगी क्योंकि पवारों की नासमझी और नालायकी के कारण उनके दाँतों को राजनीति का खून लग गया है। और किसी को एक बार खून लग जाए तो वह हिंसक हो उठता है। अब 53,000 कुनबी मतदाता के आंकड़े का गणित चलाकर दोनों बड़े दल कुनबी प्रत्याशी को प्राथमिकता देना पसंद करेंगे। ऐसी स्थिति में 45,000 पवार मतदाता होते हए भी कोई दल पवार प्रत्याशी को प्राथमिकता दे,इतना आसान और संभव प्रतीत नहीं होता।
यदि दोनों बड़े दल कुनबी प्रत्याशी को अपना प्रत्याशी बनाते हैं तो ऐसी स्थिति में 53 ,000 कुनबी मतदाता का बंटना तय है। किसी भी दल के प्रत्याशी के लिए पवार के समर्थन के बिना जीत पाना संभव नहीं है।
यदि भाजपा या कांग्रेस दोनों में से कोई भी दल पवार प्रत्याशी को टिकट देता है तो समाज हित में हमें चाहिए कि अपना स्वार्थ त्यागकर हम पवार प्रत्याशी को पूरा समर्थन करें। किसी पराये को जिताने से तो अच्छा है हम अपने को ही जिताये।अपना अपना होता है और पराया पराया। मौसी कभी माँ नहीं बन सकती।
यदि कोई भी बड़ा दल पवार प्रत्याशी नहीं बनाता है तो ऐसे में 45,000 मतदाताओं के मत का समाजहित में दोहन किया जाना चाहिए। तब हरियाणा खाप की तर्ज पर सर्वमान्य उम्मीदवार को अपना निर्दलीय प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा जाना चाहिए। किसी भी विधानसभा सीट के लिए इतनी बड़ी संख्या में मत मायने रखते हैं। हरयाणा पंचायत जिस तरह राजनीति में दखल रखकर राज़नीतिक दलों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करने का दबाव बनाती है और समाज का उम्मीदवार न खड़ा करने पर स्वयं का उम्मीदवार मैदान में उतारकर सभी दलों को धूल चटाती है ,उसी तर्ज पर चुनाव रणनीति बनाने का समय आ गया है। कांग्रेस हो या भाजपा यदि समाज के सदस्य को उम्मीदवार नहीं बनाती है तो उन्हें सामाजिक शक्ति का अहसास कराने का समय आ गया है। अपना वोट हम परायों को देकर कब तक उनकी नज़रों में हम पराये बने रहेंगे। पराये कभी अपने नहीं होते, और अपने कभी पराये नहीं होते।
समाज के सर्वांगीण विकास के लिए समाज का लीडर जरुरी है। समाज का लीडर समाज की समस्याओं से ज्यादा करीब से जुड़ा होता है,अतः वह समस्याओं के समाधान के लिए सार्थक पहल कर सफलता सुनिश्चित कर सकता है। लीडर जीवन में जरुरी है। हर युग में लीडर की जरुरत होती है। बिना लीडर के समाज दिशाविहीन हो जाता है। आज समाज लीडर के अभाव में दिशाविहीन है। पवार बाहुल्य जिलों में भी विधानसभा और लोकसभा चुनाओं में समाज की जिस तरह उपेक्षा की जाती है उससे तो यही साबित होता है कि राजनीति के कुछ स्वार्थी तत्व अपना हित साधने के लिए जानबूझकर समाज की उपेक्षा करते आ रहे हैं। अब समय आ गया है कि उनकी उन चालों को नेस्तनाबूद कर और अन्य समाज के उम्म्मीदवारों को जीताने में उम्र जाया करने की जगह हम अपने ही किसी योग्य भाई- बहन को इस क्षेत्र में तैयार कर और सहयोग कर अपना भाग्य अपने हाथों लिखें।
सुखवाड़ा ,सतपुड़ा संस्कृति संस्थान ,भोपाल।