शेष राशि रुपये 75 ,000 (पचहत्तर हजार) ‘समाज के नोबेल पुरस्कार” के खाते में जमा की जा रही है।
“सुखवाड़ा” ई -दैनिक और मासिक वर-वधू के इस निर्णय की प्रशंसा करते हुए उनके स्वस्थ सुखी संपन्न वैवाहिक जीवन की कामना करता है।
“सुखवाड़ा” ई -दैनिक और मासिक
]>बैतूल जिले में भाट के मतानुसार पंवार समाज के पूर्वज लगभग विक्रय संवत 1141 में धारा नगरी धार से बैतूल आए थे। जिले में लगभग पंवारों के 200 गांव है। पंवारों की संख्या लाखों में है। बैतूल जिले के पंवार अग्निवंशी है, इनका गोत्र वशिष्ठ है, प्रशाखा प्रमर या प्रमार है। ये पूर्ण रूप से परमार (पंवार) राजपूत क्षत्रिय है। वेद में इन जातियों को राजन्य और मनोस्मृति में बाहुज, क्षत्रिय, राजपुत्र तथा राजपूत और ठाकुरों के नाम से संबोधित किया है। सभी लोग अपने भाट से अपने वास्तविक इतिहास की जानकारी अवश्य लें ताकि आने वाली पीढ़ी को भविष्य में यह पता रहे कि वे कौन से पंवार है उनका गोत्र क्या है? हमारे वंश के महापुरूष कौन है। जब मालवा धार से पंवार मुसलमानों से युद्ध करते हुए नर्मदा तट तक होशंगाबाद पहुंचे वहां उस समय कि परिस्थितियों के कारण सभी लोगों ने अपने जनेऊ उतारकार नर्मदा में डाल दिए थे। भाट लोगों के अनुसार ये सभी परमार शाकाहारी थे, मांस मदिरे का सेवन नहीं करते थे।
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वेदिक सोलह संस्कारों को अपनाते थे किंतु समय और विषम परिस्थितियों के कारण सेना के इस समूह की टुकडिय़ां क्रमश: बैतूल, छिंदवाड़ा, सिवनी, बालाघाट, मंडला, जबलपुर, रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव, भिलाई, दुर्ग तथा महाराष्ट्र के नागपुर, भंडारा गोंदिया, तुमसर, वर्धा, यवतमाल, अमरावती, बुलढाना आदि जिलों में जाकर बस गए। बैतूल और छिंदवाड़ा के पंवारों को उस समय यहां रहने वाली जातियों के लोगों ने अपनी बोली से भुईहर कहा जो अपभ्रंस होकर भोयर कहलाये। उस समय की भोगौलिक परिस्थिति तथा आर्थिक मजबूरियों के कारण ये समस्त पंवार अपने परिवार का पालन पोषण करने के चक्कर में अपने मूल रीति रिवाज और मूल संस्कार भूलते चले गए। सभी ओर क्षेत्रीय भाषा का प्रभाव बढ़ गया इसलिए इन सभी क्षेत्रों में वहां की स्थानीय भाषा का अंश पंवारों की भाषा में देखने आता है किंतु आज भी पंवार समाज की मातृभाषा याने बोली में मालवी भाषा और राजस्थानी भाषा के अधिकांश शब्द मिलते है। सैकड़ों वर्षो के अंतराल के कारण लोगों ने जो लोकल टाइटल (पहचान) बना ली थी वो कालांतर में गोत्र के रूप में स्थापित हो गई। आज प्रचलित सरनेम को ही लोग अपना गोत्र मानते है जबकि गोत्र का अभिप्राय उत्पत्ति से है और सभी वर्ण के लोगों की उपत्ति किसी न किसी ऋषि के माध्यम से ही हुई है। हमें गर्व है कि हमारी उत्पत्ति अग्निकुंड से हुई है। और हमारे उत्पत्ति कर्ता ऋषियों में श्रेष्ठ महर्षि वशिष्ठ है, इसलिए हमारा गोत्र वशिष्ठ है।
बैतूल जिले के पंवार मूलत: कृषक है। अब युवा पीढ़ी के लोग उद्योग धंधे में तथा नौकरियों में आ रहे है। शिक्षा के अभाव के कारण यहां के पंवार समाज के अधिकांश लोग आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए है। इस समाज में पहले महिलाएं शिक्षित नहीं थी किंतु अब महिला तथा पुरूष दोनों ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर उच्च पदों पर आसीन है। समाज के उच्च शिक्षित लोग सभी क्षेत्र में बड़े-बड़े महत्वपूर्ण पदों पर और विदेशों में भी समाज का गौरव बढ़ा रहे है। कृषक भी आधुनिक विकसित संसाधनों से उन्नत कृषि व्यवसाय में लगे हुए है।
बैतूल जिले के पंवारों के गांव की सूची
बैतूल क्षेत्र के गांव
1. बैतूल नगरीय क्षेत्र 2. बैतूलबाजार नगरीय क्षेत्र, 3. बडोरा 4. हमलापुर, 5. सोनाघाटी, 6. दनोरा, 7. भडूस, 8. परसोड़ा 9. ढोंडबाड़ा, डहरगांव, बाबर्ई, डोल, महदगांव, ऊंचागोहान, रातामाटी, खेड़ी सांवलीगढ़, सेलगांव, रोंढा, करजगांव, नयेगांव, सावंगा, कराड़ी, भोगीतेढ़ा, भवानीतेढ़ा, लोहारिया, सोहागपुर, बघोली, सापना, मलकापुर, बाजपुर, बुंडाला, खंडारा, बोड़ीबघवाड़, ठेसका, राठीपुर, खेड़ी भैंसदेही, शाहपुर, भौंरा, घोड़ाडोंगरी, पाथाखेड़ा, शोभापुर, सारणी क्षेत्र, भारत भारती, जामठी, बघडोना, झगडिय़ा, कड़ाई, मंडई, गजपुर, बाजपुर, पतरापुर, सांपना, खेड़लाकिला, चिखल्या (रोंढा), कोरट, मौड़ी, कनाला, बयावाड़ी
मुलताई क्षेत्र के गांव – मुलताई नगरीय क्षेत्र, थावर्या, कामथ, चंदोराखुर्द, करपा, परसठानी, देवरी, हरनया, मेलावाड़ी, बूकाखेड़ी, चौथिया, हरदौली, शेरगढ़, मालेगांव, कोल्हया, हथनापुर, सावंगा, डउआ, घाट बिरोली, बरखेड़, पिपरिया, डोब, सेमरिया, पांडरी सिलादेही, जाम, खेड़ी देवनाला, चिचंडा, निंबोरी चिल्हाटी, कुंडई, खंबारा, मल्हारा, कोंढर, जूनापानी, सेमझर, डहरगांव, चैनपुर, तुमड़ी, डोल, मल्हाराखापा, पिपरपानी, नीमदाना, व्हायानिडोरनी, छोटी अमरावती, छिंदखेड़ा, गाडरा, सोमगढ़, झिलपा, नंदबोही, दुनावा, दुनाई, गांगई, मूसाखापा, खल्ला, सोनेगांव, सिपावा, भैंसादंड, मलोलखापा, बालखापा, घाट पिपरिया, सरई, काठी, हरदौली, लालढाना, खामढाना, लीलाझर, बिसखान, मयावाड़ी, थारी, मुंडापार, चिखलीकला, कपासिया, लाखापुर, हिवरा, पारबिरोली, खैरवानी, सावंगी, लेंदागोंदी, मोरखा, तरूणाबुजुर्ग, डुडरिया, पिडरई, जौलखेड़ा, मोही, हेटीखापा, परमंडल, नगरकोट, दिवट्या, बुंडाला, हेटी, खतेड़ाकला, हरनाखेड़ी, अर्रा, बरई, जामुनझिरी, टेमझिरा, बाड़ेगांव, केकड्या, ऐनस, निर्गुण, सेमझिरा, पोहर, सांईखेड़ा, बोथया, ब्राम्हणवाड़ा, खेड़लीबाजार, बोरगांव, बाबरबोह, महतपुर, माथनी, छिंदी, खड़कवार, केहलपुर, तरोड़ा, सोड्ंया, रिधोरा, सोनोरी, सेमरया, जूनावानी, चिचंडा, हुमनपेट, बानूर, खेड़ी बुजुर्ग, उभारिया, खापा, नयेगांव, ससुंद्रा, पंखा, अंधारिया,
आमला नगरीय क्षेत्र – जंबाड़ा, बोडख़ी, नरेरा, छिपन्या, पिपरिया, महोली, उमरिया, सोनेगांव, बोरदेही, चिचोली, भैंसदेही, गुबरैल, डोलढाना आदि।
बैतूल जिले के वर्तमान में पंवारों के भिन्न-भिन्न सरनेम, उपनाम जिसे आज ये लोग गोत्र कहते है।
परिहार या पराड़कर, पठाड़े, बारंगे, बारंगा, बुआड़े, देशमुख, खपरिए, पिंजारे, गिरहारे, चौधरी, चिकाने, माटे, ढोंडी, गाडरी, कसारे, कसाई, कसलिकर, सरोदे, ढोले, ढोल्या, बिरगड़े, उकड़ले, रोलक्या, किरणकार, किनकर, किरंजकार, घाघरे, रबड़े, रबड्या, भोभाट, दुखी, बारबुहारे, मुनी, बरखेड्या, बागवान, देवासे, देवास्या, फरकाड्या, फरकाड़े, नाडि़तोड़, भादे, भाद्या, कड़वे, कड़वा, रमधम, राऊत, रावत, करदात्या, करदाते, हजारे, हजारी, गाड़क्या, गाकरे, खरफुस्या, खौसी, खवसे, कौशिक, पाठेकर, पाठा, मानमोड्या, मानमोड़े, हिंगवे, हिंगवा, डालू, ढालू, डहारे, डोंगरदिए, डोंगरे, डिगरसे, ओमकार, उकार, टोपल्या, टोपले, गोंदर्या, धोट्या, धोटे, ठावरी, ठूसी, लबाड़, ढूंढाड्या, ढोबारे, गोर्या, गोरे, काटोले, काटवाले, आगरे, डोबले, कोलया, हरने, ढंडारे, ढबरे, तागड़ी, सेंड्या, खसखुसे, गढढे, वाद्यमारे, सबाई।
सिवनी, बालाघाट, गोंदिया, महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ़ में प्रचलित सरनेम – अम्बूल्या, आमूले, कटरे, कटरा, कोलहया, गौतम, चौहान, चौधरी, चैतवार, ठाकुर, टेम्भरे, टेम्भरया, डाला, तुरूस, तुरकर, पटले, पटलया, परिहार, पारधी, कुंड, फरीद, बघेला, बिसन, बिसेन, बोपच्या, बोपचे, भगत, भैरव, भैरम, भोयर, ऐड़ा, रंजाहार, रंजहास, रंदीपा, रहमत, राणा, राना, राउत, राहंगडाले, रिमहाईस, शरणागत, सहारत, सहारे, सोनवान्या, सोनवाने, हनवत, हिरणखेड्या, छिरसागर।
पंवारों का मूल गौत्र तो वशिष्ठ ही है ऊपर दिए गए सभी सरनेम या उपनाम है।
उपरोक्त जानकारी प्रकाशन दिनांक तक प्राप्त ग्रामों के नाम तथा सरनेम इस लेख में दिए गए है।
]>समृद्धि के पथ पर बढ़ते समाज में हमारे व्यापारी बंधुओ का विकास अन्य समाजो की तरह तेजी से नहीं हो पा रहा है न ही हम पवार समाज व्यापार के क्षेत्र में अपनी सुदृढ़ पहचान स्थापित कर पाए है.. कही न कही हमारी समाज का व्यापारी वर्ग आकार में विशालकाय होने के बावजूद भी पिछड़ा हुआ है और जिसे हम सब को मिलकर आगे बढ़ाना होगा उन्नत बनाना होगा.. क्योकि हम सभी के परिवारों से कोई न कोई तो अवश्य ही व्यापार से जुड़ा हुआ है .. तो हम सब को आगे आना होगा एक दूसरे का सहयोग करना होगा और समाज के व्याप्परी वर्ग को समृद्ध और विकासशील बनाना होगा !!
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]>पुनर्विवाह में समस्या : समाज में अब तक कोई भी एक एकीकृत प्रणाली विकसित नहीं है जहा पुनर्विवाह सम्बन्धी युवक युवतियो की जानकारी मिल सके..इसके अलावा क्षेत्रवाद की समस्या भी जिससे जानकारी का आदान प्रदान नहीं हो पाता और रिश्ते नहीं बन पाते..समाज के ऐसे परिवारजन या व्यक्ति (युवक -युवतिया) जिनके जीवनसाथी की या तो मृत्यु हो चुकी है या फिर किसी और वजह से अपने जीवनसाथी से भिन्न एकल जीवन यापन करने पर विवश है..कभी कभी परिवार या व्यक्ति पुनर्विवाह करने चाहते है किन्तु कुछ सामाजिक परिस्थितियों की वजह से खुलकर अपनी बात कह नहीं पाते ऐसे में हमारे परिवार की बहन बेटीया या युवक युवतिया जिनका जीवन सुधर सकता है वो जानकारी के आभाव में अपना जीवन न चाहते हुए भी इसी तरह बिताने पर विवश हो जाते है !!
समाधान : पवार समाज के विभिन्न क्षेत्रो में निवासरत परिवारों में ऐसे भाई बहिन जो अपने जीवन की नयी शुरुवात करना चाहते है उन्हें पवारमट्रीमोनिअल एक सामूहिक मंच प्रदान करने का प्रयास करता है जिससे पुर्नविवाह समबन्धित सदस्य अपनी जानकारी हमें दे सकते है और हम ऐसे सभी सदस्यों जो विभिन्न क्षेत्रो से होंगे उन्हें अपना जीवनसाथी तलाशने में सहायक भूमिका अदा कर पुर्नविवाह समबन्धित सदस्यों की जानकारी साझा की जाएगी!!
नोट : जो व्यक्ति अपनी किसी निजी कारणों से सामूहिक मंच पर जानकारी साझा नहीं करना चाहते..वो अपने बच्चो या अपनी जानकारी सीधे हमसे संपर्क करके विचार विमर्श कर सकते ..आपका पूरा सहयोग किया जायेगा !!
पुनर्विवाह सबंधित सामाजिक व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत जानकारी दिए गए लिंक पर जाकर प्रदान करे : http://www.pawarmatrimonial.com/register/
नोट : सभी सामाजिक बंधुओ से विनम्र निवेदन है की.. हो सकता है यह जानकारी आपके लिए महत्वपूर्ण ना हो किन्तु अपने समाज में, या अपने रिस्तेदारो या फिर किसी परिचित के घर परिवार भाई बहन या बच्चो के लिए जो अपनों के जीवन को फिर नयी शुरुवात देना चाहते हो उनके लिए जानकारी अत्यंत उपयोगी हो सकती है.. कृपया समाजहित में सहयोग करे.. अधिक से अधिक लोगो तक पहुचाये शेयर करे!!
]>एक तरफ अपना समाज तरक्की कर रहा है एक नयी उचाईयों तक पहुंच रहा है अपने “राजा भोज के वंशज” होने पे बड़ा फक्र होता है लेकिन दूसरी और समाज के कुछ कड़वे सच भी है जिन्हे हम देखना नहीं चाहते | उनसे आँखें मिलाता हूँ तो परेशान हो जाता हूँ | वैसे हमारा सीधे लेना देना नहीं है हम ही इस बारे में क्यों सोचें हमारी ज़िन्दगी तो ठीक ठाक चल रही है हमें क्या फर्क पड़ता है – लेकिन फर्क पड़ता है | हम भी तो इसी समाज का एक हिस्सा हूँ | हर बात के हमसे आपसे होकर ही तो गुजरती है … आज अगर राजा भोज ज़िंदा होते तो हम उन्हें क्या जवाब देते |||
समाज में विधवाओं की दशा आधुनिक काल में भी बड़ी शोचनीय है । अतः विधवा पुनर्विवाह की समस्या किसी न किसी रूप में अब भी उपस्थित है अपने समाज में जिसे मिलकर दूर करने का मिलकर प्रयास करना है |
पुनर्विवाह इच्छुक समाज का व्यक्ति इस लिंक पर जा के अपना ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करे : http://www.pawarmatrimonial.com/register/
ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के उपरांत आपको आपकी ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन, लॉगिन अवं प्रोफाइल डिटेल्स रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर हमारे द्वारा भेज दी जाएगी |
आपको पावरमैट्रीमोनिअल के व्हाट्सअप्पग्रूप में जोड़ लिया जाएगा जिसमे वैवाहिक जानकारी शेयर की जाती है |
]>पावर इंजीनियर्स एंव़ एप्लाईज एसोसिएशन, म०प्र० में बिजली क्षेत्र की पाँचो कम्पनी केडर के अधिकारियों/कर्मचारियों की समस्या और माँग हेतु एकमात्र संगठन।
]>लोकतान्त्रिक प्रक्रिया बहाल करने और राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के लिए –
“राष्ट्रीय राजा भोज महासंघ का गठन”
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होशंगाबाद। हर जिले ,हर क्षेत्र ,हर संभाग और हर प्रान्त के राजा भोज वंशीय पवार ,भोयर और परमारों को सम्मानजनक प्रतिनिधित्व देने और लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से समाज के प्रतिनिधियों को चुनने के उद्देश्य से राष्ट्रीय राजा भोज महासंघ का गठन किया जा रहा है। उक्त आशय की विज्ञप्ति श्री नारायण पवार द्वारा जारी की गई। उल्लेखनीय है श्री नारायण पवार जिला कर्मचारी कांग्रेस होशंगाबाद के 20 वर्षों तक निर्विरोध अध्यक्ष चुने गए और सेवानिवृत्ति के बाद से वे सेवानिवृत कर्मचारी संघ के अध्यक्ष हैं।
अभी हाल ही में उन्हें असंगठित कामगार संघ का अध्यक्ष मनोनीत किया गया है। श्री नारायण पवार लगभग 40 वर्षों से ज्यादा से व्यवसायिक प्रशिक्षण स्टेनो और कप्यूटर ट्रेनिंग में दे रहे हैं जिससे लाभान्वित होकर हजारों की संख्या में युवक- युवतियां देश और प्रदेश के कार्यालयों में सेवारत हैं। श्री नारायण पवार आज भी नर्मदा परिक्रमा करने वाले श्रृद्धालुओं को अपने घर निःशुल्क भोजन और आवास की व्यवस्था कराते हैं और दसवां तथा तेरहवीं कार्यक्रम होशंगाबाद घाट पर नाममात्र व्यय पर संपन्न कराने में सहयोग करते हैं।
श्री नारायण पवार द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि राष्ट्रीय राजा भोज महासंघ में प्रत्येक क्षेत्र के राजा भोज वंशीय पवार ,भोयर और परमारों के समाज संगठनों का सम्मानजनक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जायेगा। इस संगठन का रजिस्ट्रशन नई दिल्ली से कराया जा रहा है ताकि यह क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर लोकतान्त्रिक पद्धति से समाज सेवा का कार्य कर सके।
उल्लेखनीय है अभी राष्ट्रीय पवार क्षत्रिय महासभा केवल गोंदिया बालाघाट और भंडारा का प्रतिनिधित्व करता है एवं इन्ही क्षेत्रों के लोगों को प्रतिनिधित्व दिया जाता हैं जिससे समय समय पर उसपर आक्षेप भी लगते रहे हैं पर वे अपने छिपे एजेंडे पर चलने के लिए बाध्य हैं और चाहकर भी क्षेत्रवाद से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं। यह संगठन समाज सदयों को वर्षों से भ्रमित करता आ रहा है और अन्य जिले और क्षेत्र के संगठनों की उपेक्षा करता आया है। उसके निमंत्रण पत्र में भी किसी क्षेत्र विशेष के लोगों को ही वरीयता दी जाती है।
श्री नारायण पवार ने सभी क्षेत्र के भोयर पवार और परमार समाज संगठन के सदस्यों और पदाधिकारियों से अनुरोध किया है कि वे गोंदिया में हो रहे 14 ,15 जुलाई के आयोजन का बहिष्कार करें और राष्ट्रीय राजा भोज महासंघ के सदस्य बनकर और इससे जुड़कर क्षेत्रवाद के स्थान पर राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने में सहयोग करें। श्री नारायण पवार का मोबा न आपकी सुविधा के लिए दिया जा रहा है -9165868465
पवार जंगल में उगे पेड़ की तरह पलते हैं-
कृष्ण के घर सुदामा का जाना नहीं,अपितु शबरी के घर राम का जाना लोक जीवन में मायने रखता हैं। ऐसा ही कुछ तब घटित हुआ जब जिला क्षत्रिय पवार समाज संगठन छिंदवाड़ा के पदाधिकारी गण, कुछ गण मान्य समाज सदस्यों के साथ शिवानी के घर उसे बधाई देने और सम्बल प्रदान करने पहुँचें। उल्लेखनीय है कि छिंदवाड़ा जिले के छोटे से गांव बीचकवाड़ा में रहने वाली कु शिवानी पवार ने 12वीं के कला संकाय की मेरिट सूची में मध्यप्रदेश में पहला स्थान प्राप्त किया है। उसकी इस उपलब्धि के लिए माननीय मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान द्वारा भी कु शिवानी पवार को सम्मानित किया जा चूका है। इस अवसर पर कु शिवानी पवार पिता श्री दिनेश पवार* के घर पहुंचकर माननीय जिला अध्यक्ष श्नी एन,आर.डोंगरे,जिला सचिव महेश डोंगरे,राजा भोज प्रतिमा अनाव़रन के जिला अध्यक्ष श्री हेमराज पवार ,युवा जिला अधयक्ष देवीलाल जी पाठे,रामचन्द्र पवार,सुताराम शेरके सतीश चन्द्र पवार,उमेश माटे,रामदास पवार सारोठ,दीपक गाडरे पालाखेड ,मधु पवार,गजानद पवार मंगल पवार,मदन पवार,रामकृष्ना पवार रामप्रसाद पवार ,गुरूप्रसाद बोबडे ,हरिप्रसादजी बोबड़े,पन्नालालजी डोंगरे,दिनेश जी पाठे ,बनवारी जी पवार आदि द्वारा भव्य स्वागत किया गया और उसकी हर संभव सहायता का आश्वाशन दिया गया।
उल्लेखनीय है कि पवार बगीचे में नहीं जंगल में उगे पेड़ की तरह पलते बढ़ते हैं। जंगल में पेड़ स्वयं संघर्ष करके पलता -बढ़ता है। बगीचे में पौधे रोपे जाते हैं। उन्हें खाद पानी दिया जाता है। माली उनकी देखरेख करता है। परन्तु पवारों के भाग्य में न बगीचा होता है और न माली। जैसे किसी जंगल में पेड़ अपने आप उगते और पलते बढ़ते हैं वैसे अधिकांश पवार संघर्ष में ही जीते और पलते बढ़ते हैं। वे बगीचे और माली के लिए तरसने के स्थान पर जंगल में संघर्ष के लिए तैयार रहते हैं। जंगल में पौधे स्वयं अपना सृजन करते हैं स्वयं अपना निर्माण करते हैं। कु शिवानी भी इसी तरह जंगल में उगे पेड़ का प्रतिनिधित्व करती है और बिना माली के पल्ल्वित और पुष्पित होने का प्रतिनिधित्व करती है। उसकी संघर्षशीलता और उसके जोश जूनून और जज्बे को नमन।
चित्र – सौजन्य :श्री हेमराज पवार पाला चौरई
#pawarmatrimonial
-सुखवाड़ा ,सतपुड़ा संस्कृति संस्थान ,भोपाल
झूठी पड़ी कहावत –“कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली”
हमारे अपने बीच के ही साथी श्री बलराम डाहरे ने इस कहावत को ही झूठा साबित कर दिखाया है। एक रंक ने आज वह कर दिखाया है जो वर्षों पूर्व किसी राजा ने कर दिखाया था। मृत राजा भोज की कथा कहानी तो आपने सुन रखी है पर हमारे बीच जिन्दा राजा भोज को बहुत कम लोग जानते है। श्री बलराम डाहरे को जीवित राजा भोज कहना अतिशयोक्ति हो सकती है पर उनके लिए इससे उपयुक्त और कोई विशेषण प्रतीत ही नहीं होता। राजा भोज द्वारा भोपाल के निकट भोजपुर में शिव मंदिर बनाया गया था जिसे मालवा का सोमनाथ कहा जाता है। भोपाल के ही समीप मण्डीदीप स्थित 55 सीढ़ी मंदिर प्रांगण में श्री बलराम डाहरे द्वारा 65 फ़ीट ऊँचा श्री राम जानकी मंदिर बनाकर अपने पूर्वज राजा भोज की परंपरा को आगे बढ़ाया है और इस कहावत को झूठा साबित कर दिया है जो इतिहास प्रसिद्ध है -कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली। इस मंदिर में जयपुर से मंगवाया गया संगमरमर का साढ़े चार फ़ीट ऊँचा राम दरबार स्थापित है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ से राजा भोज निर्मित भोजपुर शिव मंदिर दिखाई देता है। बैहर बालाघाट के राम मंदिर से भी भव्य और मनोरम यह मंदिर पवारों की शान में चार चाँद लगा रहा है। भोपाल आते जाते इसका दर्शन लाभ लिया जा सकता है। य़ह मंदिर रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड से मात्र एक डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस महान कार्य के एवज में श्री बलराम डाहरे को कभी बधाई देने का मन करे या उनसे बात करने का मन करें तो उनका मोबाइल न है -08889913842 ,09009408298
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